असिराम डंगौरा
थारू कला संस्कृति पहिचान बचैना अभियानमे थारू बुद्धिजीवी अगुवा साहित्यकार युवा ओ पत्रकार लोग खास कैके करिब दुई ढाई दशकसे जमके लागल बाटै। कला संस्कृति थारू पहिचानके बारेम हर पत्रकार साहित्यकार बुद्धिजीवी हुक्रे कमसे कम दश बाराठो जनचेतना डेना लेख रचना पक्कै लिख सेकल हुइहि। दुई ढाई दशकके समयमे सैंयो अभियान नारा बैठक गोष्ठी कार्यक्रममे सहभागी हु सेकल हुइहि ।
मनो कोइ फरक नाइ परल, बडलटि रहल बैज्ञानिक ओ इन्टरनेटके जवानामे इ अभियान लेख रचना बैठक गोष्ठी सब सुखल बालुम पानी बरैना हस हुइटा। जब सम कार्यक्रममे रठि, टबसम पहिचान बचाइ हस लागठ । मने कौवा करैटि रहि, सुक्खुन सुखैटि रहि, अस्टे अवस्था बा थारू पहिचानके अभियानमे लागल मनैन्के।
दिन प्रति दिन समाजमे उच्छृङ्खल कला संस्कृति ठाउँ बनैटि जाइटा । थारू पहिचान लोप हुइना स्थिति कैसिक पुगल टो ? यकर खास जर बुझेक् लग हमहन २०५७ साल ओर फेरसे उलिटके हेरेक परि।
तत्कालिन प्रधानमन्त्री शेरबहादुर देउवाके पहलमे २०५७ सावन २ गते कमैया मुक्ति घोसना कैगिल। यी घोसना बँधुवा कमैयन्के लग लावा जिन्गिक आस लैके आइल। हर कमैया परिवारके मनैन्के मनमे अनेकौ सपना भरल । हुइना टो हर मनैन् अपन सपना डेखे पैना अपन जिन्गि स्वतन्त्र जिए पैना अधिकार रहठ। डुखेक बाट यहे रहल, सरकार मुक्ति टो डेहल, मनो जिन्गि जिना जुक्ति नाइ डेहल।
लेखक असिराम डंगौरा
भरल बर्खम कमैया मुक्ति घोसना करके कमैयन्के भरमे खेटि करूइया किसान ओ किसन्वक भरमे चुल्हा बर्ना कमैयन्के बहुट कर्रा फे कर डेहल। कमैया राखे नाइ पैना हो खेटि कैसिक लागि, कमैया लागे नाइ पैना हो, कुठ्लीम छाक टर्ना धान, चाउर नाइ हो। अपन लरका परकन का खवाइ, भुख कैसिक मेटि ?
कमैया मुक्ति घोसना पाछे किसन्वक घारी बारीम बैठल कमैयन् अपन गाउँ ठाउँ छोरके लर्कन्के सुखि जिन्गिक सपना बोक्के औरे ठाउँ शिविर बैठे जाइ पर्ना हुइल। खास करके यहाँसे फेन थारू कला संस्कृति थारू पहिचान ओरैना सुरूवाट हुइल।
२०५२ सालसे माओवादीके उदयसे फे कुछ थारू पहिचानमे असर टो परल, मनो खासे कुछ फरक नाइ रहे । माओवादी योद्धन्के कहाइ खालि उच्छृङ्खल मेरिक समाजमे नाइ पच्ना नाचकोर न करो किल रहे ।
हर गाउँ गाउँसे कमैया शिविर ओर जबसे बसाइँ सरे लग्नै, टबसे थारू गाउँमे हर बरस डसैँहा मन्ड्रा बोल्ना फे मुश्किल परे ।
सचमे एकचो गहिर विचार करके अपन पुरान दिन याड करि, पहिले थारू कला संस्कृति नाच कोरमे मन्डरिया ओ नचनिया के रहे ? पक्कै फे ऊ मन्ड्रा बोलुइया ओ मन्ड्राक टालमे फिरहारा मार मार नचुइया मनैया एकठो कमैया परिवारसे बिल्गिट । उ अस्टिम्कीक् गिट गउइया, झुम्रा सखियम नचुइया, भोजेम माँगर गउइया, महिला ढेर जैसिन कमैया परिवारसे बिल्गैं । डफ, मन्ड्रा, मन्जिरा कस्टार बजैना सब कमैया परिवारमे अभिन सम मिलि।
कमैया मुक्ति समयके माग रहे । ओकर पाछक् व्यवस्ठापनके समय भोगल मनैन् पटा मिलल् । मनो थारू संस्कृतिक पहिचान मेट्ना एकठो बरा कारन कमैया मुक्ति हो कहलेसे फरक नाइ परि ।
कमैया मुक्तिसे पहिले थारू कमैया हुक्रे डिनभरिक कामके ठकान डट्करावन मेटाइक लग संघरिया–संघरिया मिलके डफ, मन्ड्रा बोलके साँझके नाचगान करैह । हर जोटे बेर सजना गिट गाईह, इहिनसे गाउँघर खेट्वा चैनार रहे। थारू गिट नाचगान भेग्वा अंगौछा लगुइया, हेल्का डिलिया, सुप्पा, छट्रि, बिर्चि, खटिया, मचिया बनैना सिप प्राय कमैयन ठन रहे।
कमैया मुक्ति हुइल पाछे शिविर बैठे जैना हुइलेक ओरसे मन्डरिया एक शिविरमे, नचनिया डोसर शिविर टो गुरूवा अघरिया टिसर शिविरमे बैठे जैना मजगुर हुइनै। ऐसिके हर गाउँसे कमैयनके नाउँमे थारू कला संस्कृति ओ पहिचानके फे सास टुटगिल। छारा कर्ना क्रममे मन मिल्ना संगसाठ यारि दोस्ती छुटल । शिविरमे सत्तार गाउँक मनै सक्हुनसे मन राग नाइ मिले सेकठ, टबमारे रहल प्रतिभाके फे डबके डम टुटगिल।
कमैया मुक्ति हुइल पाछे शिविर बैठे जैना हुइलेक ओरसे मन्डरिया एक शिविरमे, नचनिया डोसर शिविर टो गुरूवा अघरिया टिसर शिविरमे बैठे जैना मजगुर हुइनै। ऐसिके हर गाउँसे कमैयनके नाउँमे थारू कला संस्कृति ओ पहिचानके फे सास टुटगिल।
थारू कला, संस्कृतिके पहिचान रहै कमैयन् । ऐसिक कहे बेर हजुर हुक्रन लागठुइ कमैया किल सबकुछ जानैह कि का ? मनो सच इहे हो, जब गाउँमे नाचगान हुए, टब दस मनैमे खाली ३ जे निम्न वर्गिय किसान कलाकार डेखा परैह, बाँकि सब कमैया परिवारसे रहै। यकर मटलब इ नाइ हो कि किसन्वन्के कुछ भुमिका नाइ रहे । कमैयन्के नाचगान कर्ना वाटावरन डेना टो किसन्वाक हामे रहे। थारू किसन्वनमे सयमे डुइठो रहल हुइहि, जे कमैयन कमैया सम्झना, नि कमैयन फे अपन परिवार सम्झना । किसन्वनके इटिहास फे बहुट बा ।
उ टो खासल अपन भोट बैंक बनाइक लग सरकार कमैया मुक्ति घोसना करल । गैरथारू कमैया, हलियनके अवस्ठा का रहे, कत्रा रिनमे रहै, इ नाइ जन्ठु, मनो थारू कमैयनके मुक्ति करे पर्ना मेरके बँढुवा फे नाइ रहै। हर थारू कमैयनके काम करटि रहल किसन्वक ठे ढेर से ढेर १०÷१५ हजार सौंकि रहल हुइ । नि ओत्रा फे नाइ रहल हुइ । टब फे मुक्ति हुइल पाछे फे बचल रिन कटाईक लग बहुट कमैया काम करके माघ पुगैनै।
हाँ, थारू कमैया भूमिहिन रहै कलेसे गाउँ ठाउँम रहल ऐलानी जग्गा वितरण करलेसे फे हुइना रहे। ऐसिक हेर्लेसे उ समय फे सरकार कमैया मुक्तिके नाउँमे थारू मत विभाजन करके थारू एकता टुरल । लाल पूर्जाके सैचिन एकठो कागज पक्राइल । जग्गा कहाँ बा, पटै नि । अभिन सम कमैया उचित व्यवस्ठा कर्ना बाँकि बा। अब्बैके समयमे फे संघीयताके बहानामे थारून् डबाइक मारे जान बुझके थारू जात राजनितिम कमजोर हुइना मेरिक प्रदेश विभाजन करल बा।
ओरौनिम थारू पहिचान बचैना अभियानमे लागल बुद्धिजीवी, साहित्यकार युवा, पत्रकार हुक्रन अत्रै कहम कि यदि हजुर हुक्रे थारू पहिचान बचैना चाहटि कलेसे कमैया मुक्तिसे पहिले अपनेक गाउँघरमे कौन मनैया डफ, मन्ड्रा बोलाए, सजना ढमार मैना सखिया अस्टिम्कीक् गिट के गाए ? पटा करि ।
ओ, वहाँ हुक्रन बहुट सम्मानपुर्वक ओइन समय समय गाउँ नानके गिट, कला संस्कृति सिप सिखा मांगि । ढोटि पोक्टा पारे, डफ मन्ड्रा बोलाइ, गाइ सिखि टो थारू पहिचान बचि । डिजेक टालमे पुठ्ठम मन्ड्रा बाँन्ढके मन्ड्रा बोलैना नाटक करके हमार पहिचान कबु नाइ बचि । जोशीपुर–५, सिमराना
प्रकाशित:
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१६ कात्तिक २०८०
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२४ वैशाख २०८२
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