थारु भसाके तिन धार
७१६ दिन अगाडि
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१३ कात्तिक २०७९
फायल तस्विर
नेपाल भासिक आर जातिय विविधता के देस छेकी । नेपालके संविधान २०७२ मे १२३ टा जातके पहिचान करल छी । महज अखनतक आरना छुटल जातके पहिचन हावेके क्रम जारी रहल छी ।
भसा आयोगके खोजके आधारमे थप ८ रा जात फेनसे पता लगलकिस जकर चल्ते येतेकर भसाके संख्यामे बढोतरी हेथै ज्या रहल छी । उना जातके बाहुल्यतता के आधारमे थारुके जनसंख्या चौथा स्थानमे रहल छी ।
थारु भसा पुरु मेचीसे ल्याके पछिम महाकाली तक तराइके बहुत जिल्लामे बोल्थै आवि रहल छी । महज एक जघके थारुसब दोसर जघके थारुसङे बातचित करछी जन त सम्पर्क भसा नेपालीके सहयोग लेछी । यिटा दुखके बात छेकी आपने जातसङे दोसर भसाके परयोग करनाइ ?
वेह्यासे थारु भसाके विकास आर एकताके खातिर थारु कल्याण कारिणी सभा आर थारु निमाङ मेडिया मानक भसा बनावेमे आ–आपन तरिकासे पहल करिरहल छी । यिटाके खातिर बहुत जुम मिटिङ भी करी चुकलकिस । महज वोकरसियाके पहलमे जे काम हाविरहल छी, उनाके विहयाके देखलासे थारु भसाके तिन धार देखा परछी ।
पुरातनवादी सोच
खास करिके पहेनकर सरजक आर परम्परावादी सोचमे आधारित रहल विचारवादीसवके धारना कुन छी की थारु भसा नेपाली भसाके आधार ल्याके निखेके चाही । नेपाली वरनमलामे जतन्याँ वरन रहल छी, उनाके मान्याता देवेके चाही । जकर चल्ते अखनकर पुस्तासव जे एकटा लैया सोच ल्याके आगु बढलिस उना विचारसे फरक किसिमके धारना राखी रहल छी । थारु भसामे एकोटा बरन नै छुटेके चाही । तकरवाद तत्सम आर आगन्तुक सवदके हकमे भी वेह्या किसिमके मान्याता राखी रहल छी ।
यि किसिमके पुरातनवादी सोच आर बार्निक चस्मा लग्याके थारु भसाके मानक बनावे लगिन कतन्याँ सहज हेती या नै हेती आवे वला समय मे थाह लागती ?
दोसर बात कुन छिकी थारु बाहेक आरना जातसव भी आपन भसा पहिचानके क्रममे आगु बढी रहल छी, ओहोना के अध्ययन करना जरुरी छी कि नै ? ओकराका आपन मौलिकताके अधार बन्याँ के उच्चारनके आधारमे आपने वरनमलामे सिमित रहल छी । वोकराका नेपालीके सवटा वरन क्यामनी सुकारे साकल्की ? हमराका आपन मौलिकता आर उच्चारनके अधारमे कुछ वरनसव छोड़िके थारु भसा निखे साकवी कि नै ?
मध्य–पुर्विया सोच
मध्य–पुर्विया चिन्तनवादीसव फरक धारसे आगु बढी रहल छी । थारु भसाके वरन निर्धारन करे लगिन त्रिभुवन विश्व विद्यालयके नेतृत्वमे बरसो बरसोतक झापासे ल्याके बारा पर्सातक खोज अनुसन्धान, भासिक सर्वेक्छन, ल्याव टेस्ट, कथा रेकर्डिङ लगायत बहुत जिम्मेवारी बहन करल छी ।
वरन पहिचानसे ल्याके वरन निर्धारन, लेखन सैली, व्याकरन, सवदकोस निकाली चुकलकिस । थारु भसाके प्रचार प्रसार आर जग बरिय बनावेके खातिर बहुत जिल्लामे तालिम, लेखन अभ्यासके खातिर पतरिका परकासन आर अनौपचारिक सिछाके सुरवात लगातार अभ्यासके रुपमे करिरहल छी ।
मध्य–पुर्वियासवके सोच कुन छी की थारु भसामे अनावस्यक रुपमे नेपालीके सवटा वरन ढेरियाके भसाके बोझ नै बनावम । भसा सरल आर व्यवस्थित बनावम ।
हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । भसा विग्यानके अधार ल्याके आगु बढेके चल्ते आपन छेतर व्यापक रुपमे विस्तार करिलेल छी । जकर चल्ते झापासे ल्याके बारा पर्सातकके लेखनमे एकरुपता आने लतिन सफल भेल छी ।
पैछमा सोच
खास करिके पछिम महर रहल थारुसवके सोच दुइ धारमे देखा परछी । राना थारु आर डंगौरा थारु ।
अख्ने राना थारुसव हमराका थारु नै छेखिन कहिके थारुसे छुटिके जनजातिमे सुचिकृत भ्या गेल छी । यिटासे थारुसवके बहुत घटा भ्या रहल छी । क्यामकी राना थारुसे छुटलाके वाद थारुके जनसंख्या घटिरहल छी । तकरवाद छुटै जातमे सुचिकृत भेलासे वोखरुका अल्पमतमे परिये जेती । यिना बात वोखरुका मनन करिके पाछु फेनसे थारु जातिमे येवे करती यिटामे दुइ मत नै छी । अख्ने राना थारुसव भसा आयोगके नेतृत्वमे थारु व्याकरन निखेमे जुटी गेल छी ।
डंगौरा थारुसव भी वरन पहिचान करि लेलकिस । वोकरसियाके वरनमे त,थ,द,ध नै भेटलिस जन त आरना चिज मध्य–पुर्वियासङे मेल ख्या रहल छी । ह्रस्व, दिर्धके सवलमे खाली ह्रस्व निखेके अभ्यास करिरहल छी ।
अखनतक पछिम महर बहुत साहित्यिक सिर्जना भ्या गेल छी, आर कुछ समय कृष्णराज सर्वहारी जी गोरखापत्र दैनिकके थारु भसाके पृस्ठमे यिटा सैलीके अभ्यास करी चुकलकिस ।
थारु भसाके मानक बनावे लगना तिनोरो धारके एकेटा जगमे आनना जरुरी छी । वेह्यासे तिनटा धारसे जे फरक फरक विचार आवी रहल छी सव्हैके भासिक चस्मा लग्याके देखना जरुरी छी । तकरवादे बुझे साकती थारु भसा किरङके निखेके चाही ।
जव भसा फरक छी जन त वरन फरक होना स्वभाविक छी । अख्ने जे किसिमके संवाद आर पहल हावी रहल छी, सवका आपने अडानमे रहती जन त थारु भसाके मानक बनावे नै साकती ।
पुरातनवादीसवके आपन सोचमे परिवर्तन करना जरुरी छी । हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । जेरङ कोइ फुटबल खेलाडी खेलमे अभ्यस्त भ्या गेलाके वाद जव भलिवल खेले जेती त वे ट्याङ ल्याके मारे खोझती त कुन हेती ? वोहिरङे नेपाली निखाइमे अभ्यस्त हावेके कारनसे आर थारुके वरन निर्धारन प्रकियामे योगदान आर तालिम नै देवेके वजसे यि किसिमके दिगभ्रममे फसल छी ।
आव बात रहली मध्य–पुर्विया आर पैछमामे । यिना दुनोराके सोचमे बहुत समानता पेल जेछी, क्यामकी थारु भसाके विकासके खातिर एकटा निखेके सैली तयार करल छी । थारु भसा आपन मौलिक उच्चारनके अधारमे निखेके चाही । उच्चारन आर वास्तविक लवज छोडिदेलासे थारु भसा कुन महर जेती पता नै छी ।
वेह्यासे सवका आपन अडान छोडिके लैया सिरासे जानइ जरुरी छी । थारु भसाके मानक बनावे लगिन एकटा साझा लेखन सैलीके विकास करना जरुरी छी । लेखन सैलीके अधार मानिके निखलासे निखाइमे एकरुपता येती ।
तकरवाद सावदिक भिन्नताके बात रहती उना पर्यायवाची के रुपमे आपन स्थान ग्रहन करती । यि किसिमसे सुरुवात करलासे थारु मानक भसा बनावे लगिन सहज हेती ।
बुढीगंगा–२, बौराह, मोरङ निवासी लेखक हाल थारू आयोगके सदस्य हुइट