गजलः सपनक् सहर

गजलः सपनक् सहर

६६८ दिन अगाडि

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२ पुष २०७९

डेरा ओ देउता

डेरा ओ देउता

६८२ दिन अगाडि

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१७ मंसिर २०७९

                                                                                                                                                        हमार पहुरा  पहिले  जब जब मै निक्रुँ कोनो यात्रामे अचानक डगरेमका मन्दिरके साम्ने हाँठ डुवा करक लग उठे हे देउता, मोर आजुक यात्रा सफल करहो ।  मै सहरमे बैठ्ठुँ ओहेसे यहाँ, ठरवाना, मरवा कहुँ नै भेटैलुँ सोच्लुँ महि रक्षा करुइया देउता जब नै हुइट इ सहरमे  मै कसिक सुरक्षित रहम् ? मोर मेनम  प्रश्नके भुइँचाल उठल का सहरमे फेन मरुवा स्ठापना करे नै सेक्जाइ ? डेरा जिन्दगीमे मरुवाके स्ठापना ? इ डुरके बात हो इ केवल सपना हो पूरा नै हुइना सपना टै छोरडे ।  मने तुरुन्त समस्यक् समाढान भेटाके मै डंग पर्ठु सायड गुर्बावा मोर मनेम  पैंठके कहलाँ  अपन डेरक् एक कोन्वम डेहुरार काजे नै बनैठे ? हजुर,  आजकाल, मै अपन डेरक् एक कोन्वाहे डेहुरार मान्ले बटुँ आब जब जब निकरठुँ मै यात्रामे डेरक डेहुरार मानल कोन्वा ओर झुक्के डुवा मंगठुँ अई गुर्वावा, मोर आजुक यात्रा सफल करहो । सहरिया बाबु लोग पशुपति, गुहेश्वरीक् चक्कर कट्नासे का अपनेन्के मोर पद्चिन्ह पछ्यइयक नै चहबि ? आई डेरक् एक कोन्वा ओर डेहुरार बनाई ।  डेहुरार बनाई ।।                                                                                                                                                       गोचाली खबर (विद्युतकर्मी साहित्यिक समाजद्वारा काठमाडौंमा शुक्रबार आयोजित बहुभाषिक काव्य गोष्ठीमा वाचित कविता । डेराको साँगुरो कोठामा बसे पनि देउताप्रति आस्था जगाउने एउटा कुना छुट्याउनुपर्ने भाव कविताले बोकेको छ।)

  मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

  मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

७०२ दिन अगाडि

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२७ कात्तिक २०७९

हुक्र मुअल इतिहास बेँच्क सिंहदरबार छिर्ठ टुँ फे हुकनक बाटम् भुल्ठो कमैया मुक्त घोषणा के करल ? बुर्हाइल मनैन भत्ता के डिहाइल रु मलिक्वन्हँक बेगारि के कर छुटाइल ? टुहाँर मनम् म्वार मनम् बुडिक फोटु आइअस झलल आइठ् एक्ठो फोटुँ हमा बारिमक न झोङ्ल्यार बुबक लगाइल  बम्मइ आमक रुख्वा बरघरान घरक डख्खिनसे उठ्ठि रहल  लल्छार डिन कम्ड ठेरिक सौँठ्यारि धान कट्ना चोख्खुर रेँटिक हँस्या ओ ठुँठ हँस्य कचोट्ना बरनक उह ठोक्या मै एक्ठो बाट पुछु कैह्यासम टुहाँर मनम् इह फोटु अउइया बा ? एक्चो डिउर्हार कोन्टि जाऊ पटाहा डेर्हिम हेरो उहाँ डेख्बो बुडिक बिनल ढक्या एक्चो भिट्टर जाऊ  उहाँ डेख्बो चाउर ढरल डाईक आनल भोजाहा ढक्या एक्चो भौँका छोरो उहाँ डेख्बो भौँक छ्वापल आजिक बिनल पन्ह्वाँ ढक्या एक्चो बगर्वम जाऊ  बुसि ढरल डेख्बो काकिक बिनल ढक्या टुहाँर  आजिक बुडिक डाईक काकिक बिनल ढक्यम् टुहाँर नाट पाटन्के पस्ना बहल बा आप टुहाँर डुख ढक्या बोकि टुहिन सुख ढक्या डि उहमार मंसिर म  धान ओसाए जाइबेर टुँ ढक्या बोक्क जिहो....।  

थारु भसाके तिन धार

थारु भसाके तिन धार

७१६ दिन अगाडि

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१३ कात्तिक २०७९

                                                                                                                                                    फायल तस्विर नेपाल भासिक आर जातिय  विविधता के देस छेकी । नेपालके संविधान २०७२ मे १२३ टा जातके पहिचान करल छी । महज अखनतक आरना छुटल जातके पहिचन हावेके क्रम जारी रहल छी । भसा आयोगके खोजके आधारमे थप ८ रा जात फेनसे पता लगलकिस जकर चल्ते येतेकर भसाके संख्यामे बढोतरी हेथै ज्या रहल छी । उना जातके बाहुल्यतता के आधारमे थारुके जनसंख्या चौथा स्थानमे रहल छी ।  थारु भसा पुरु मेचीसे ल्याके पछिम महाकाली तक तराइके बहुत जिल्लामे बोल्थै आवि रहल छी । महज एक जघके थारुसब दोसर जघके थारुसङे बातचित करछी जन त सम्पर्क भसा नेपालीके सहयोग लेछी । यिटा दुखके बात छेकी आपने जातसङे दोसर भसाके परयोग करनाइ ?  वेह्यासे थारु भसाके विकास आर एकताके खातिर थारु कल्याण कारिणी सभा आर थारु निमाङ मेडिया मानक भसा बनावेमे आ–आपन तरिकासे पहल करिरहल छी । यिटाके खातिर बहुत जुम मिटिङ भी करी चुकलकिस । महज वोकरसियाके पहलमे जे काम हाविरहल छी, उनाके विहयाके देखलासे थारु भसाके तिन धार देखा परछी । पुरातनवादी सोच खास करिके पहेनकर सरजक आर परम्परावादी सोचमे आधारित रहल विचारवादीसवके  धारना कुन छी की थारु भसा नेपाली भसाके आधार ल्याके निखेके चाही । नेपाली वरनमलामे जतन्याँ वरन रहल छी, उनाके मान्याता देवेके चाही । जकर चल्ते अखनकर पुस्तासव जे एकटा लैया सोच ल्याके आगु बढलिस उना विचारसे फरक किसिमके धारना राखी रहल छी । थारु भसामे एकोटा बरन नै छुटेके चाही । तकरवाद तत्सम आर आगन्तुक सवदके हकमे भी वेह्या किसिमके मान्याता राखी रहल छी ।  यि किसिमके पुरातनवादी सोच आर बार्निक चस्मा लग्याके थारु  भसाके मानक बनावे लगिन कतन्याँ सहज हेती या नै हेती आवे वला समय मे थाह लागती ?  दोसर बात कुन छिकी थारु बाहेक आरना जातसव भी आपन भसा पहिचानके क्रममे आगु बढी रहल छी, ओहोना के अध्ययन करना जरुरी छी कि नै ? ओकराका आपन मौलिकताके अधार बन्याँ के उच्चारनके आधारमे आपने वरनमलामे सिमित रहल छी । वोकराका नेपालीके सवटा वरन क्यामनी सुकारे साकल्की ? हमराका आपन मौलिकता आर उच्चारनके अधारमे कुछ वरनसव छोड़िके थारु भसा निखे साकवी कि नै ?  मध्य–पुर्विया सोच मध्य–पुर्विया चिन्तनवादीसव फरक धारसे आगु बढी रहल छी । थारु भसाके वरन निर्धारन करे लगिन त्रिभुवन विश्व विद्यालयके नेतृत्वमे बरसो बरसोतक झापासे ल्याके बारा पर्सातक खोज अनुसन्धान, भासिक सर्वेक्छन, ल्याव टेस्ट, कथा रेकर्डिङ लगायत बहुत जिम्मेवारी बहन करल छी ।  वरन पहिचानसे ल्याके वरन निर्धारन, लेखन सैली, व्याकरन, सवदकोस निकाली चुकलकिस । थारु भसाके प्रचार प्रसार आर जग बरिय बनावेके खातिर बहुत जिल्लामे तालिम, लेखन अभ्यासके खातिर पतरिका परकासन आर अनौपचारिक सिछाके सुरवात लगातार अभ्यासके रुपमे करिरहल छी ।  मध्य–पुर्वियासवके सोच कुन छी की थारु भसामे अनावस्यक रुपमे नेपालीके सवटा वरन ढेरियाके भसाके बोझ नै बनावम । भसा सरल आर व्यवस्थित बनावम ।  हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । भसा विग्यानके अधार ल्याके आगु बढेके चल्ते आपन छेतर व्यापक रुपमे विस्तार करिलेल छी । जकर चल्ते झापासे ल्याके बारा पर्सातकके लेखनमे एकरुपता आने लतिन सफल भेल छी । पैछमा सोच खास करिके पछिम महर रहल थारुसवके सोच दुइ धारमे देखा परछी ।  राना थारु  आर डंगौरा थारु ।  अख्ने राना थारुसव हमराका थारु नै छेखिन कहिके थारुसे छुटिके जनजातिमे सुचिकृत भ्या गेल छी । यिटासे थारुसवके बहुत घटा भ्या रहल छी । क्यामकी राना थारुसे छुटलाके वाद थारुके जनसंख्या घटिरहल छी । तकरवाद छुटै जातमे सुचिकृत भेलासे वोखरुका अल्पमतमे परिये जेती । यिना बात वोखरुका मनन करिके पाछु फेनसे थारु जातिमे येवे करती यिटामे दुइ मत नै छी । अख्ने राना थारुसव भसा आयोगके नेतृत्वमे थारु व्याकरन निखेमे जुटी गेल छी ।  डंगौरा थारुसव भी वरन पहिचान करि लेलकिस । वोकरसियाके वरनमे त,थ,द,ध नै भेटलिस जन त आरना चिज मध्य–पुर्वियासङे मेल ख्या रहल छी । ह्रस्व, दिर्धके सवलमे खाली ह्रस्व निखेके अभ्यास करिरहल छी ।  अखनतक पछिम महर बहुत साहित्यिक सिर्जना भ्या गेल छी, आर कुछ समय कृष्णराज सर्वहारी जी गोरखापत्र दैनिकके थारु भसाके पृस्ठमे यिटा सैलीके अभ्यास करी चुकलकिस ।  थारु भसाके मानक बनावे लगना तिनोरो धारके एकेटा जगमे आनना जरुरी छी । वेह्यासे तिनटा धारसे जे फरक फरक विचार आवी रहल छी सव्हैके भासिक चस्मा लग्याके देखना जरुरी छी । तकरवादे बुझे साकती थारु भसा किरङके निखेके चाही ।  जव भसा फरक छी जन त वरन फरक होना स्वभाविक छी । अख्ने जे किसिमके संवाद आर पहल हावी रहल छी, सवका आपने अडानमे रहती जन त थारु भसाके मानक बनावे नै साकती ।  पुरातनवादीसवके आपन सोचमे परिवर्तन करना जरुरी छी । हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । जेरङ कोइ फुटबल खेलाडी खेलमे अभ्यस्त भ्या गेलाके वाद जव भलिवल खेले जेती त वे ट्याङ ल्याके मारे खोझती त कुन हेती ? वोहिरङे नेपाली निखाइमे अभ्यस्त हावेके कारनसे आर थारुके वरन निर्धारन प्रकियामे योगदान आर तालिम नै देवेके वजसे यि किसिमके दिगभ्रममे फसल छी । आव बात रहली मध्य–पुर्विया आर पैछमामे । यिना दुनोराके सोचमे बहुत समानता पेल जेछी, क्यामकी थारु भसाके विकासके खातिर एकटा निखेके सैली तयार करल छी । थारु भसा आपन मौलिक उच्चारनके अधारमे निखेके चाही । उच्चारन आर वास्तविक लवज छोडिदेलासे थारु भसा कुन महर जेती पता नै छी ।  वेह्यासे सवका आपन अडान छोडिके लैया सिरासे जानइ जरुरी छी । थारु भसाके मानक बनावे लगिन एकटा साझा लेखन सैलीके विकास करना जरुरी छी । लेखन सैलीके अधार मानिके निखलासे निखाइमे एकरुपता येती ।  तकरवाद सावदिक भिन्नताके बात रहती उना पर्यायवाची के रुपमे आपन स्थान ग्रहन करती । यि किसिमसे सुरुवात करलासे थारु मानक भसा बनावे लगिन सहज हेती । बुढीगंगा–२, बौराह, मोरङ निवासी लेखक हाल थारू आयोगके सदस्य हुइट