सोरठ
६२९ दिन अगाडि
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११ माघ २०७९
लक्ष्मी राना
एक देशमे कक्ष नामको एक राजा रहए । बो राजाके खास नाउँ जयचन्द रहए पर पानी भितर बैठनके कारनसे सब बोसे कक्ष राजा कहत रहएँ । कक्ष राजाके सात रानी रहएँ । सात रानी मैँसे कोइके फिर बालका ना भओ रहए । राजाके ठिन धनदौलतके कोइ कमि ना रहए पर हजार गजके महलमे किल्कारि मारन बालो कोइ बालका भि ना रहए । बालका बिना राजमहल सुनो रहए । राजमहल अधुरो रहए । सबकुछ होतएहोत फिर राजा बालका बिना दुखी रहए ।
एक दिन राजा अपन गुरुके बुलाएके बिचर बाइ । राजा कहि कि, ‘मिर तमान साल हुइगए हएँ बिहाके पर बालका ना भए हएँ । कि कोइ ग्रहदसा लागो हए । जैसि हए उइसि बताबओ ।’ तव गुरु कहि, ‘तिर किस्मतमे बालका ता हए पर तिर हाथसे पाप होबैगो ।’ राजा कहि, ‘कैसो पाप खुलके बताबओ ?’ तवफिर गुरु कहत हए कि, ‘तिर घरमे एक कन्याको जलम होबैगो पर तए बोके पिछु ब्याहइगो ।’ ऐसि कहिके गुरु बिदाबारि लैके अपनो घर चलो गओ । राजा बहुत सोचमे पडिगओ । रातदिन गुरुके बात समखए । राजा सोचए कि, ‘अपनि लौँडियासे ब्याह करहओँ तव मोसे बडो पापी और अधर्मी जा दुनियामे कौन होबैगो
कुछ दिन बिते, कुछ महिना और कुछ साल बिते । फिर एक दिन राजाके सबसे छोटी रानी गरबबति होत हए । औ नाँै महिना पिछु बेटीको जलम होत हए ।
जिस दिन सोरठ जलमि रे पवन धरे अब लंक
काठ मजुसा खोलके दइ हए समुन्दर बिच डार ।।
सोरठ जल्मन बेरा दिउतिन बुढिया रानीके आँखीमे कारो चिथरक पट्टि बाँध देत हए । रानी अपन बच्चक देखनए ना पात हए । दिउतिन बुढिया कोइके फिर सोरठके देखन ना दै । राजा सोनोसे मण्ह्रो दुरसे झल्मलान बारो काठमजुसा बन्बात हए । दिउतिन बुढिया बहे काठमजुसामे सोरठके धरके समुन्दरमे पुहाए देत हए ।
समुन्दरके धारय धार काठमजुसा पुहत जात हए । जव जराङ्गमे काठमजुसा अटक जात हए तव सोरठ रोन लागत हए । पुहन लागत हए तव चुप हुइजात हए । ऐसिअए काठमजुसा पुहत पुहत सिरेसे दख्खिन ओर दुरको गाउँमे पुग्जात हए ।
तर कुमडा माटि खोदए रे उपर बलिया बंश
उठकेन कुमडा देखियो रे एक अचम्मो आए ।।
समुन्दरके किनारे ढाहोमे बलकुमाढ और कुम्डनिया घल्लाके ताहिँ माटि खोदत होत हएँ । समुन्दरमे तमान मछर्हा मछरि मारत होत हएँ । समुन्दरके धारयधार झल्मल झल्मल करत कुछ पुहत आत होत हए । कुमाढ नजर उठाएक देखत हए ता एक अचम्मो चिज पुहत आत देखत हए । ‘बो का हए’ कहिके मछर्हनके दिखात हए । देखन ताहिँ सब मछर्हा दौर पडत हएँ । पानी मैसे निकारके देखत हएँ ता हिरामोती और सोनोसे मण्ह्रो काठमजुसा । मछर्हा कहत हएँ कि, ‘जा काठमजुसा हम निकारे हम लेमङ्गे ।’ तव कुमाढ कहत हए कि, ‘मएँ देखो तव तुम निकारे । उपरके तुम बाँटलेव काठमजुसा भितर जो निकरैगो बो मोके दैदिअओ ।’ कुमडाके बात सुनके सब मछर्हा मानजात हएँ । मछर्हा सोनेके मण्ह्रो चिज सब लैचले जात हएँ । खालि काठमजुसा छोड जातहएँ । कुम्डनिया अपन लोगासे कहत हए कि, ‘काठमजुसा खोलके देखओ भितर का चिज हए ?’ खोलके देखत हएँ ता बो भितर लौँडिया खेलत होत हए । निरवंशी कुमाढ कुम्डनिया लौँडियाके पाएके बहुत खुसी हुइजात हएँ । बे सोरठके अपन घरे लैचले जात हएँ ।
ऐसि सोरठ सुथरि रे सिँक बरण करेहाओँ
सिँक बोर पानी पियए रे आँट फटए मरिजाए ।।
बलकुमाढ कुम्डनिया अपन लौँडियाके नाउँ सोरठ धरदेत हएँ । बे सोरठके अपने सगि लौँडिया जैसो पालत हएँ । सोरठ बडि अचम्मि लौँडिया होत हए । सोरठ दिखानमे खुब सुथरि होत हए पर सिँका जैसि पतरि होत हए । सोरठ पानी पियत हए ता बोके आँटि फटजाबए और मर्जाबए फिर जिन्दा हुइजाबए । ऐसि दिन बितत गए औ सोरठ धिरेधिरे बडि होत गइ ।
कुछ साल बाद सोरठ जवान हुइजात हए । सोरठ इतनि सुथरि दिखाबए कि जब कुँइयामे पानी भरन जाबए तव प्यासे पानी पियन तलक भुल जामएँ । गाउँ बारे कहएँ, ‘सोरठसे जौन ब्याह करैगो बोके भाग खुल्जाबैगो ।’ काम करन इकल्लो सोरठ घरसे बाहिर निकरए । काम ना होबए तव बो घरमे कुचि रहए । सोरठकि ऐया आँगनमे सुखौनो डार जाबए । लौँडिया घरसे बाहिर ना निकरए कहिके सोरठकि ऐया आँगनमे सुखौनो डारके लम्बि रसरि बाँध देबए । और सोरठसे कहए, ‘ललो रि घरसे बाहिर मत निकरिए’ ऐसि कहिके अपना काम करन चलिजाबए । सोरठ घरए भितरसे मुर्गियनके दलाओ करए ।
सोरठ लोककथा संग्रहके लेखिका लक्ष्मी राना
एक दिन कक्ष राजा सिकार खेलन जात हए । सिकार खेलतए खेलत राजा बल कुमाढके गाउँ पुग्जात हए । राजाके जोडसे पानी प्यास लागि । तव राजा कुइयामे पानी पियन जातहए । कौन छेँकमे राजाके नजर सोरठमे पडजात हए । राजा अपन नोकरसे पता लग्बात हए कि, ‘कुमाढके घर कौन लौँडिया हए ?’ सर्वगुण सम्पन्न सोरठके देखतए राजाके मन पड्जात हए । अब राजा सोरठके अपन रानी बनैया । राजा सोरठके देखन ताहिँ रोज अपन घोडाके सुखौनो खान पठाओ करए । घोडा फिर सिखो । घर भितरसे सोरठ रसरि हलाबए तव घोडा भाजैनाएँ । घोडा घरिघरि सुखौनो खान आबए सोरठके बाहिर निकरके घरिघरि दलान पडए । राजा सोरठके देखन ताहिँ ओट बैठो रहए । जैसि घोडा दलान बाहिर निकरए राजा सोरठके खुब देखो करए ।
ऐसि दिन बितत गओ । एक दिन कक्ष राजा बल कुमाढके गाउँ आनको खबर गाउँमे फैलबाइ । राजा सात सहेलके साथ गाउँमे आओ । गाउँके सबए लोग, बैयर, लर्का, जमान सब देखन जामएँ । सोरठ फिर अपन सात सहेलिनके संग राजाके देखन गै । गाउँके सबए मनैनके बिच राजा ठाह्रो । तव राजा अपन सखनसे पुँछत हए कि,
बरन बरन घैलि बनि रे एक बरनि पनिहार
मएँ तोसे बुझओँ ए सखा रे यिन मैँसे सोरठ कौन ?
‘इतनो लौँडियनके बिचमे सोरठ कौन हए ? चिन्हाइ ना देत हए ।’ तव राजाके सखा कहत हए कि,
बरन बरन घैलि बनि रे एक बरनि पनिहार
सोनेक कलसा सिरय धरे हयेँ बेहिँ सोरठ नार ।।
‘जौन सोनेक कल्सा मुडमे धरे हए बहे सोरठ हए ।’ तव राजा देख लेत हए ।
राजाके आसपास फिर बोके तमान सखा बैठे । सोरठ सिर्फ कक्ष राजाके बारेमे सुनि रहए पर कबहि देखि ना रहए । तव सोरठ फिर अपन सहेलिनसे पुँछत हए कि,
बरन बरन घोडे बने रे एक बरनि असबार
मएँ तोस बुझओँ ए सखी रे यिनमे राजा कौन ?
‘ए सखि जे मैँसे राजा कक्ष कौन हए । मएँ ता तिन्हि ना पाओ ?’ तव बोक सहेली मस्कि कि,
बरन बरन घोडे बने रे एक बरनि असबार
सोनेक छत्तुर सिरय धरे हयेँ बेहिँ राजा कक्ष ।।
‘तए इत्कौ ना चिन्ह पाओ । जौन सोनेक छत्तुर सिरमे धरे हए बहे राजा कक्ष हए ।’ तव राजा और सोरठके बिचमे चिनाजानि भै । तव सोरठ राजासे कहि कि,
आज बसेढो राजा हिँयए करओ रे देहओँ बढैया खाट
पान सुपारी सिरए गेँदुवा दुधसे फुकारओँ तेरो पाँव ।।
‘इतनो दुरसे तुम आए हओ । आज तुम मिर घर रात रहिलेव । मिर घरमे पान सुपारी जो जुरयहए बहे खबएहओँ और दुधसे तुमर पाँव धोएके तुमर सेबा करहओँ । दिलसे तुमर स्वागत करहओँ ।’ राजा सोरठके बात मान लेत हए और सोरठके घरमे रात रहत हए ।
पाँयेन घोडे टपे टपे रे घोडे हिसएँ दाँत
सोबत सोरठ उजकि रे आए हएँ राजकुमार ।।
सिर्फ सोरठके ताहिँ कक्ष जैसो बडो राजा बलकुमाढके घरमे रात रहत हए । बिनकि घरको खानु खात हए । राजा सोरठसे कहत हए कि, ‘मएँ तुमर घर रहो । तुम फिर हमर राजमहल ऐयओ पहुना बनके ।’ तव सोरठ कहत हए कि, ‘ठिक हए मएँ आमङ्गो ।’
सोरठ राजमहल जानक समरन लागत हए । तव बोके सहेली कहन लागिँ कि, ‘बो ता कक्ष राजा हए पानी भितर रहत हए । तए हुँवा कैसेके जाबैगो । पानी भितर तए रहि ना पएहए ।’ तव सोरठ कहि, ‘हाँ सखी तुम सब ठिकए कहत हओ ।’ सोरठ राजमहल नजानको बात राजासे कहत हए । तव राजा सोरठके बात सुनके कहत हए कि,
तए रानी मतको हिनो कि तेरि ओछि बुध
काहेक बिरा दओ रहए रि काहेक लओ घुमाए ?
‘तुम कैसे हओ कभि कहत हओ जएहआँे । कभि कहत हओ ना जएहओँ । सोरठ तुमर ठिन बहुत बुद्धि हए । तुम दुर तक सोच लेत हओ पर तुम काहे कहे जएहआँे । फिर काहे कहत हओ ना जएहओँ ।’ तव सोरठ कहत हए कि,
ना मएँ रानी मतको हिनो नएँ मेरि ओछि बुध
सात सखिनके बोलमे रे बिरा लओ घुमाए ।।
‘मिर थिन इतनो बुद्धि ना हए । मएँ जबैया रहआँे पर का करओँ । सात सहेलिनके बोलमे पडिगओ और अपनो बिरा घुमाए लओ । जा चोटि नाएँ दुसरो चोटि जरुर जामङ्गो ।’ तव राजा दुखी हुइके कहत हए कि,
तुम मण्डिलकि रानिया रे हम पानीके कक्ष
घर घर बाछा ना करओ रे जेहिँ बडेनकि हए रित ।।
‘तुम मन्डिलमे बैठन बाले और मएँ पानीमे बैठन बालो । मएँ तुमर बोल मानके तुमर घरमे रात बैठो । जौनके घरमे रात रहत हएँ । बोके अपन महलमे आनक निउतो देत हएँ जहे हमर पुर्खनसे चलो आओ रित हए । तभि मएँ तुमके निउतो दओ पर तुम घरिघरि झुठो बाचा मत करेकरओ । मएँ तुमके अपन रानी बनैया हओँ । अगलि चोटि तुमके मएँ ब्याहन अएहओँ ।’ राजाके बात कोइ ना टारपात हएँ । बलकुमार सोचत हए कि माटिके काम करके जिन्दगी गुजर करन बालेक लौँडियासे कक्ष जैसो राजा बिहा करनको ता बहुत बडो सौभाग्य हए । जेहिँ बात सोचके बलकुमाढ सोरठके ब्याह करनको हुँकारि राजाके दैदेत हए । राजा बडो खुसीके साथ बिदाबारि लैके अपनो राजनगरी लौट जातहए ।
राजाके घरमे और राजनगरीमे बडो उत्सबके साथ ब्याहके तयारी होन लागो । होना सोरठके घरमे फिर बडो धुमधामसे ब्याहके तयारी होबए । राजा बल कुमाढके घर ब्याहन आओ । सोरठ सजके बैठि होत हए । सोरठ राजाके हँथियामे बैठो सरमे पगा बाँधे मोखोसे देखत हए । अन्तरज्ञानी सोरठ जान लेत हए कि, ‘जौन राजा ब्याहन आओ हए । बो बोके जनम देनबालो बाप हए ।’ फूलसे सजो मण्डपमे कक्षराज झगापगा बाँधे आत हए । फिर सोरठ अपन सखी सहेलिनके संग आत हए । मण्डपके आसपास राजघरानोके लोग ब्याहमे आए भए तमान देशके राजारानी, राजकुमार और नगरनगरीके आदमी जम्जमाने होत हएँ । मण्डपमे राजासे कैसे कहओँ कहिके सोरठ समखत हए । फिर सोरठ भ्युँरबान बखत हुँवैपर कहत हए कि,
दबु धरओँ त पगु पडओँ रे पग पग बर्सए पाप
जा कलजुग अनरित हए रे बेटिक ब्याहए बाप ।
राजा बेटी जयचन्दकि पालि बल कुमाढ
राजा मरहए रोरके तए जितैगो रे खन्धार ।।
उत्तर उत्तर कियुँ न फिरगए उत्तर तुमरो हए देश
देख तुमारी सुरत रे हृदयमे लागो हए चोट ।।।
‘मएँ तेरे सगि लौँडिया हओँ । मएँ जल्मतएक तए मोँके काठमजुसामे धरके समन्दरमे पुहाएदओ । मोके बलकुमाढ पालपोसके बडो करि । तए जैसे भिँयुरिके ताहि पाँव बढान डटो हए । तेरो पाँव पाँवपर पाप बर्सन डटो हए । आज अगर तए मोसे ब्याह करो ता जा बडो भारि पाप होबैगो । तए कहाँ जाएके अपन पाप धोबैगो । तए जा जुगमे रोरके मरैगो । मएँ तोसे ब्याह ना करहआँे । तए जौन डगर आओ हए बहे डगर चलो जा । आज तेरि जा सुरत देखके मनमे बडो चोट लगो हए ।’ सोरठके जा बोल सुनके कक्षराज झस्कत हए और पुरानि बात समख लेत हए । तओ राजा सोरठसे कहत हए कि,
फिर कहो बेटी फिर कहओ रे कहियओ बेहिँ बोल
बेहिँ बोलके कारन घरसे करङ्गो तेरो ब्याह ।।
‘तए अभे जो जे सारि बात कहो हए एक बार फिर कहो । अगर तए सचमे मिर अपनि बेटी हए मएँ तेरो ब्याह अपन घरसे करबामङ्गो । अपन हाथसे मएँ तेरो कन्यादान करङ्गो ।’ सबके सामने कक्ष राजा सोरठके अपने बेटीके रुपमे अपनात हए । राजा सोरठकि ब्याह बहे मन्डपमे बडे धुमधामसे सोरठके मन पडो राजकुमारसे करबाए देत हए । राजा अपन हाथसे सोरठके कन्यादान करत हए ।
राजमहलमे लदबद सन्तानके रुपमे एक बेटी जलमि पर अपन बेटीके बिन देखे राजाके बहान पडिगओ । जब बेटी जवान भै अपनो बाप ब्याहन गओ । जे बात समखके राजाके मनमे बडो चोट लागो । पर अपन लौँडियाके फिरसे पाएके अपन हाथसे कन्यादान करके कक्ष राजा जा जुगकि रित बचाए लेत हए । राजा बडो खुसी होत हए ।
स्रोतव्यक्तिः राममती राना (कैलारी गाउँपालिका ९,गदरिया, कैलाली)
(सोरठ लोककथा संग्रह २०७९ माघ २० गते ७औं राष्ट्रिय थारु साहित्य सम्मेलनमे विमोचन हुइटि बा)