खिस्साः डसैंह्या जरावर

खिस्साः डसैंह्या जरावर

७४१ दिन अगाडि

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१९ असोज २०७९

मोडलिङमे चम्कटी समुके लोकप्रियता

मोडलिङमे चम्कटी समुके लोकप्रियता

७४५ दिन अगाडि

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१५ असोज २०७९

सागर कुस्मी/धनगढी कलाकार, मोडेल समु चौधरी थारु कला जगतमे लोकप्रिय हुइल बटि । हालसम हुँकार दुई दर्जनसे ढेर म्युजिक भिडियो खेल सेक्ले बटि । थारु कलाकार मन्से मजा अभिनय म्युजिक भिडियो खेल्ना कलाकारके रूपमे हुँकार नाउ आघे आइठ । अभिनसम निरन्तर थारु कलाकार एकदम कम बटैं सांगीतिक क्षेत्रमे । समु चौधरी बहुत संघर्ष कैके आइल बटि । हुँकार कला दिनदिने चाक्कर हुइटी गैल बा ।   हुँकार घर कंचनपुरके महेन्द्रनगर राजीपुर गाउँ हुइन । अब्बे घरहि बैठके कला जगतमे संघर्ष कर्टी बटि, अपन फरक पहिचान बनैटी बटि, अपन करियर चम्कैटी बटि । मोफसलमे बैठके चम्के सेक्ना समुके इ बरवार खुबी हुइन । ओहकान कला क्षेत्रमे हाँठ डारल भर्खर तीन बरस हुइलिन । तीन बरस पहिले समुहे महेन्द्र थारु, विवस चौधरी ओ अपन गोसिया आशिष चौधरीके साठ सहयोगसे इ क्षेत्रमे आइल उहाँ बटैठी । छोटेसे इ क्षेत्रमे लग्ना सपना आझ पूरा हुइल बटिन। इ क्षेत्रमे अपन करियर ओ बनाके स्थापित हुइना लक्ष्य लेके आघे बर्हटी बटि उहाँ । हुँकार रगतमे जो कलाकारिताके नसा छाँगैल बा । उहाँ थारु फिल्म बिरामे फे मुख्य अभिनय निभासेक्ले बटि । समु चर्चित हुइनाके कारण हुँकार इमानदारिता ओ कामप्रतिके निरन्तर अठोट ओ लगनशीलता हो । काममे हरदम ध्यान डेना, मेहनत कैना, मोडेलिङप्रति जिम्मेवार हुइना समुके स्वभाव रहल ओरसे निर्देशक ओइनके लजरमे उहाँ परल बटि । दर्शक ओइनके मन जिट्ना सफल हुइल बटि । उहाँ कठी, मै दर्शक ओइनके मैयाँसे आझ यहाँ पुगल बटुँ । इहे कलासे आझ उहाँ संसार भरके मनै हुँकार नाचगान हेरे पैले बटैं ।   पहिल गीत करि ना ढोटी डान्ससे लेके, अब्बेसमके जबसे हुइल दिल दिवाना, म्युजिक भिडियोसम आइट घरिम स्तरीय अभिनय समुके पहिचान बन्सेकल बा । थारु समाजमे उहाँहे सक्षम कलाकारके रूपमे चिन्हसेकल बा । हुँकार सांगीतिक यात्रा शिखर चुमसेक्ले बा । यहाँसम पुगट्सम समु चौधरी इ क्षेत्रसे भरपुर सन्तुष्ट बटि । उहाँ कठी, दिलसे लग्लेसे इ क्षेत्रसे फेन मजासे व्यवसायिक हुइ सेकजाइठ । अझकल उहाँ अपन जिनगी खुशी बर्हल अनुभुती कर्ठी हरदम । उहाँ कठी- `मै भाग्यसे इ क्षेत्रमे आपुग्नु । जा हुइलेसे फेम आब मोर लाग सबथोक कला जो हो । मै एकठो कलाकार मोडेल हुँ । मोर परिचय कलक इहे हो । इ परिचयसे नाम, दाम, सम्मान, इज्जत डेले बा । मै अभिन आकुर आघे जैना चाहठुँ । सबके मन जिट्ना चाहठुँ । थारु सांगीतिक क्षेत्रमे किल नाही अइना दिनमे नेपाली सांगीतिक फँटुवामे फेन परगा बर्हैना बिचार बा । । महिन यहाँसम पुगैना ओ कलाकारके रूपमे स्थापित करुइया ओ सहयोग करुइयन सक्क्कुहुन सम्झना चाहठुँ । दर्शक ओइनसे ढेर मैयाँ बा ।´

खिस्साः   डस्या ओ डसा 

खिस्साः डस्या ओ डसा 

७५१ दिन अगाडि

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९ असोज २०७९

दिपक चौधरी ‘असीम’      बुधरामके परडेस कमाइ गैलक् ढेर डिन हो गैल रहिस्। लगभग लगभग ढाइ बरस। डस्या लग्गे आगिल रहे ओ बुधराम असौक् डस्या अपन घर परिवारन् सङग मनैना बिचार कैले रहे।  एक डिन बुधराम अपन घरे फोन करल। फोन ओकर जन्नि उठैलिस। डुनुजाने लम्मा समय सम सुखडुखके बाट बट्ओइल ओ बुधराम कहल, असौं डस्या माने घरे आइटु हो बड्डि।  टब बड्डि कलिस, लर्कन लग डसैंह्या लुग्रा लेले अइहो । सालो कठैं लर्का  बाबा आइटे लावा झुल्वा घालब न डाइ।  हाँ हाँ लेके यैम् कहल बुधराम।  टब जन्नि कलिस, कह्या पुग्बो घरे ? डस्यक् डुइचार डिन आगे आ जिहो।  हेर बड्डि बिचार टे ओहे हो । मनो नै सेकम टे ढिक्रह्वक्  डिन भर पक्कै पुगम् कहल् बुधराम । डग्रा हेर्टि रहहो आउर डिन नै हेर्लेसे फेँ ढिक्रह्वक् रोज कह्टि फोन ढैडेलस् ।      हप्टा कर्टि कर्टि डस्या फेन घर अंगना डुवारि डुवारि करे लागल। खेट्वम् लहर लहर ढानेक् बाल झुले लागल । गाउँ गाउँ मन्ड्रा बोले लागल। अहा कट्रा सुहावन कट्रा  चम्पन ।  आझ ढिक्रह्वा । सक्कारेसे लर्का लावा लावा लुग्रम् डेखा परटैं । मनौ बुधरामके लर्का भर लावा लुग्रक् अस्रामे बिल्गठैं। मनौ बुधरामके जन्नि आझ बरा सजल सप्रल बिल्गटिस, माठेम टिक्लि माँगेम सेंडुर हाँठेम चुर्या कानेम बालि नाकेम फोंफि ढेब्रेम लालि एकडम लावा डुल्हि हस।  डुपहर हो गिल, मनौ बुधरामके अटापटा नै हो। लर्का इ घर से उ घर कर्टि खेल्ठैं। बुधरामके जन्नि डग्रा हेर्टि रठिस।         साँझके चार बज्गिल बुधरामके बाबा खोर्यम जाँर, डोन्यम सिढ्रक टिना लेके मिझ्नि खाइ बैठल रहिस्। डाइ जुन हुँक्का पिअट रहिस्। टब बुधरामके बाबा कलिस्, पटुहिया छावा अइना सुन्टहु, अभिन नै आइल ? अट्रेमे डाइ कहलिस् ‘अरे टोहार छावा नै आइ जिट्टि मुइ टब आइ।’  टब बाबा कलिस् ‘अरि बड्डि टैं सुभ सुभ टे बोलिस्। कब्बु मजा बोलि नै सुन्बो। अइम टे कहटेहे पटुहियक् ठे मै सुन्नु टब पुछटु।’  अस्टे अस्टे बाट चल्टि रहे टिनु जहनके बिच, टबे मोटरके आवाज अङ्गनामे सुनाइ डेहल ओ बन्ड हुइल।  टब बुधरामके बाबा कलिस् ‘जा टे पटुहिया हेर, कसिन मोटर आइल ? छावा आइल कि का ?’  बुधरामके जन्नि अङ्गनाम निकरलिस् टब डैबर्वा मोटरमसे उटर्टि पुछल, बुधरामके घर हो इ ?  हाँ कलिस् बुधरामके जन्नि।  टब डैबर्वा कहल, ठारु मनै नैहुइटैं ? –बटैं नि का । बाबा कहटि बलैलिस् अपन ससुर्वै बुधरामके जन्नि।  का हुइल कहटि बाबा बाहर अइलिस्।  –ए अप्ने बाबा हुइ बुधरामके बाबा ? –हजुर  –लि एहोर आइ इ कागजमे साइन करि । –मैं साइन करे नै जन्ठुँ । –ए लि टे अँङग्रिक् छाप लगाइ । –का चिजिक छाप लेहटि । छाप लग्वैटि मनैंया कहल, अप्नेक छावक् लास बुझैना । अट्रा बाट सुन्के बाबा मुर्छा परगैलिस ।  बुधरामके लास मोटर मसे उटरलिस ओ मोटर चल्गैल।  घरमे रुवाबासि मच्गैल।उ सजल सप्रल पटुह्यक् हाँठेक चुर्या फुट्गैल माँगेक सेंडुर पोछ्गैल ।  बुधरामके संगेक संघरियाहे बुधरामके बाबा पुछ्लिस, इ सब कसिक् हुइल भैया ? –कसिक् बटाउँ बरापु । घरे आइक लग हम्रे टिकट कटाके रेलक बङ्के पंज्रे बैठल रहि । अट्रेमे रेल आइल । हम्रे रेलम चहुरे जाइटहि कि रेल नेङडेहल, डाडुक हाँठ छुटगैलिन ओ गिर पर्लैं । टब इ घटना हो गिल।  सङगे खेल्ना सङगे रमैना सपना टुट्गैल।  हाँठेक् चुर्या टुटल माँगेक सेंडुर पोछ्गैल।  कसिन करम लिखल कौन डिन भगन्वाफेँ,  नच्ना गैना झुम्टि हँस्ना डस्याफेँ डसा बन्गैल।  इ खिस्सा काल्पनिक हो किहुसे मेल खाइ टे संजोग सम्झबि।   

जितिया पावन बड्या भारी

जितिया पावन बड्या भारी

७५९ दिन अगाडि

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१ असोज २०७९

जितिया पावनके बारेमे आम कहावत छे, “जितिया पावन बड्या भारी, धियापुताके सुताके अपना लेलके भोरी थारी । नेपालके पुर्वी तराईमे थारु समुदाय लगायत अन्य समुदाय जितिया पावन मनछै । खास करिके बिबाहित महिलाना यिटा पावन मनछै । यिटा पावन आपन सन्तानके दीर्घायु हे सुस्वास्थ्यके कामना करते ब्रत करछे । जितिया के सामान्य अर्थमे जितिके यल, जितेवला हेछे । जितियामे जलम लेल बच्चाके नाम जितुवा या जितनी राखछै । जे बच्चा बरियदरिय हेछे हे खेलमे जितले रहछे जनत वखरु जितुवा, जितना कहछै ।  आसिन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) के सतमी, अष्ठमी, नवमी तिथिमे बिबिध कार्यक्रम करिके जितिया पावन मनछे । यिटा पावनमे माता आपन सन्तानके सुस्वास्थ्य हे दीर्घायुके कामना करछे । यदि सनि दिन या मंगल दिन अष्टमी तिथि परलासे खरजितिया कहछे । खरके शाब्दिक अर्थ कडा, कठोर, कठिन हेछै । सतमी मे नहाय खाय, अष्टमीमे उपासल रहे, तव नवमीमे पारण समापन करछे । तीन दिनके कठोर ब्रत हेलके कारण खरजितिया कहछै । सामान्यतः तिथि मुताविक जितिया दुइ दिनके हेछे । ओटगन, उपास, पुजन हे पारणः सतमी दिनसे घर येङन साफ सुथरा करिके शुद्ध तरिकासे बिबिध पकवान बनछे । तालपोखर या लदीमे पितृ सासके केला पतामे खौरतेल चढछे हे स्नान करिके घर यछे । बिहान भिनसरमे दही, चुडा, केला वा माछ भात, रोटी जे तयार करल रहछे, ओटगन खेछे ।  सतमी मे नहाय खाय, अष्टमीमे उपासल रहे, तव नवमीमे पारण समापन करछे । तीन दिनके कठोर ब्रत हेलके कारण खरजितिया कहछै । सामान्यतः तिथि मुताविक जितिया दुइ दिनके हेछे । ओटगनमे ओलके तरकारी, माछ, मडुवाके रोटी कोनो कोनो घर परिवारमे अनिवार्य मानल जेछे । ओट के अर्थ लोक्याके, कोइनि देखे हेछे । सवकोइ सुतलेमे कोइनि देखे, ओटलागिके खानपान करलके कारण ओटगन कहछे । सतमीके रात घरके छतमे या छप्परके चारो कोनमे दही, चुडा, केला आदि पकवान केला पतामे राखिके भगवान जितमहान, पितृ, चिल्हा (गरुड), खटिया आदी देवताके निमन्त्रण लगिन चढछे ।  अष्टमीके दिन उपवास बैठल ब्रत करनीना बिहान स्नान करिके, शुद्ध बस्त्र हे सिङ्गार पटार करिके भगवान जितमहान, पितृ, गरुड, खटियाके बिधिवत पुजा करछे । घरमे बनल प्रसाद, फलफुल चढछे । चिराख पुजारीके धुपदिप देछे हे जितिया ब्रतके कथा सुनछे ।  ब्रत करनिना लाल सिनुर पिन्हिके शुभ संकेतके रुपमे जितमहान, गरुड, खटियाके लाल सिनुरके टिका लग्या देछे । पितृके चह्रल प्रसाद घरके आदमी नय खेछे । नवमीके दिन हेठपहरा पुजा समापन (पारण) करिके मूर्ति बनल छे, जनत बिसर्जन लदी, पोखरमे करछे । मूर्ति बनल नय छे, जनत प्रतिमा स्थापना करलनाके जलप्रवाह करछे । घर परिवारजन, इष्टमित्र मिलिके प्रसाद ग्रहण करछे । ब्रत करनीना आपन खुसी भोजन, प्रसाद ग्रहण करिके ब्रत समापन करछे । जितिया ब्रत कथाः महाभारत लडैमे गुरु द्रोणाचार्यके छल करिके पाण्डवना मारल की छल सेहास वकर बेटा अश्वत्थामा बदला लेवे लगिन पाण्डव वंशके संहार करेके प्रतिज्ञा करलकि छल । महाभारत लडै ओरली तव एक राती अश्वत्थामा पाण्डवके शिविरमे पैंसीके पाण्डवके पांचोरा बेटाके मारी देलके ।  मतर अभिमन्यु पत्नी उतरा गर्भवती रहेक, तव ब्रह्मास्त्र फेकिके गर्भ गिरावे चाहलकी । भगवान श्री कृष्ण वकर गर्भके रक्षा करलके मतर, जव समय पुगलि त मृत पुत्रके जलम देलके । मतर भगवान श्रीकृष्ण उटा मृत बच्चाके जिवित करिदेलकै, सेहास जिवित पुत्रिका नाम रहले । मृत्युसे जितिके यल कारण से जिवितपुत्रिका कहते कहते जितिया हेले । पाछु वेहा राजा परीक्षित नामसे जानल गेलै ।  वहिने दोसर कथामे गन्धर्वराज जिमुतवाहन नामके बड्खा प्रतापी, धर्मात्मा हे त्यागी राजा रहेक । वकर मातापिता बृद्ध अवस्थामे राजपाट त्यागिके वनप्रस्थ तपस्या करे गेले, सेहास जिमुतवाहन मातापिताके सेवा करे वनमे गेले । वतेकरा नागमाता के दुखित हे कानते देखिके जिमुतवाहन वकर दुःखके कारण पुछलके ।  नागमाता कहे लागले, हे देख, हमे नागके माता छेकिन । पंक्षीराज गरुड महर सवना बच्चा नागके संहार करे लागले सेहास बच्चानाके जिवित राखे लगिन । हरेक दिन एकटा नाग (सांप) गरुडके भोजन करे देवे परछे । आजु हमर बेटा चंखमुण्डके पला छेके । बेटा चंखमुण्डके मायाके कारणसे हमे दुखित छिन हे कानछिन ।  तव राजा जिमुतवाहनके दया लागले हे कहलके, हे देख माता, मन कानरोव आजु हमे गरुडके भोजन हेवे । हे बस राजा जिमुतवाहन लाल चादर होडीके सुति रहले । पंक्षीराज गरुड जी वकरा झपटीके नोहमे लटक्याके पहाडमे ल्यागलके । आर बेर सांपना सकबक करेक मतर यिवेर सकबक नय करलके कारण वकरा पुछलके । तव राजा जिमुतवाहन सवना कथा सुन्या देलकै ।  जिमुतवाहनके त्याग, बलिदानसे गरुड राज कहलके, हे राजन, जिमुतवाहन आजु दिनसे नागके बालबच्चानाके नय मारओ बचन देलके । वेहा दिनसे नागमाता सन्तानके जिवित राखे साकलके । सेहास जिमुतवाहन से जितिया पावन हेले कथामे छे । तेसर कथा थारु समुदायमे प्रचलनमे छे । एक समयके बात छेकी दय सोमती हे बहिन बेमती रहेक । दोनो मे मिलान असले रहेक मतर सोमती असल बिचारके रहेक जनत बेमती आपने मतिमे चलेक। सेहास श्रापके कारण दिदी सोमती गिधिन, बहिन बेमती खटिया हेलीछल । कनचनवटी राजमे मलयकेतु राजा रहेक हे नर्मदा लदीके बलथरीमे बडकी पांकरके गाछ रहेक हे वेहारा गाछीमे गिधिन हे धोनरीमे खटियाके बास रहेक ।  एक दिनके बात छेकी । जलनाना डाली बोकिके स्नान करे यले हे बहुत प्रेम भावसे पुजा करते गिधिन हे खटियारा देखलके । तव पुछलके, तोरा का कुन करछे । जलनाना जितिया पावनके बारेमे बतलके। बोखरुका दोनो बहिन जितिया पावन करे लगिन प्रण करके।  सतमीमे ओटगन खेलके अष्टमीमे उपास रहले । बेहा अष्टमीके दिन सहरके बडका बेपारीके मृत्यु हेलै हे । वेहारा पाकर गाछ लगत नर्मदा लदीके भितामे गाडि देलके । खटिया दिनभर उपासलके कारण जब रात हवेक, तब खटियाके भुख सतावेक, हे खिटियाके रहल नय गेली, राती के देखती कहिके मुर्दा ख्याके छुधा तृप्त करलके । मतर गिधिन धैर्य धारण करिके जितियामे उपासे रहलै । कुछ दिन वाद गिधिन हे खटिया मोरले, तव फेन वेहारा कनचनवटी राजमे मानुस तनमे जलम लेलके । दोनो बहिन मे दिदी गिधिनके नाम शिलवती हे बहिन खटियाके नाम कपटबती (कपुरावती) राखलकी । दोनो बहिन जहिने बाढने जैक वहिने एकसे एक सुनरी हेली । सिलवतीके बिहा साधारण परिवारमे हेली हे सातरा बेटा हेले । बेटाना बाढने गेली । सबकोइ इमानदार, कर्तब्य परायण रहेक सेहास राजा मलयकेतुके दरवारमे काम करे लागले ।  कपटवतीके बिहा राजा मलयकेतुसे हेली मतर वकरा बच्चा जलम लेते मातर मोरी जैक । वकर सातोरा बच्चा जिवित नय रहले । यिटासे रानी कपटवतिके बढिने डाह उठली हे शिलवतिके सातोरा बेटाके मुडी काटीके धररा माठमे कसिके लाल बरथीसे मुख बान्हीके शिलवति कते पठ्या देलके ।  शिलवति भगवान जितिया पावन करेक सेहास भगवान जितवहान सातोरा बेटाके माटिके मुडि बन्याके जोडी देलके हे अमृत छिटिके जिवित करि देलके । उमहर कपटवती शिलबतिके बेटाना मोरल खबर सुने लगिन, छटपट करेक मतर जिवित हेल खवर पेलके । काटलना मुडी सरिफा फलमे बदलि गेले । तव हारी हदियाके कपटवति पुछते पुछते शिलवतिके घरमे पुगली । शिलवति बहिन कपटवतिके पुर्व जलममे कथा फम कर्या देलकै, ते खटिया छेलै, हमे गिधिन । जितिया पावनमे तें उपास तोडले सेहास तोर बेटा एकोटानी रहलो हमे उपास नय तोडनी वकरे प्रतिफल भगवान जितमहानके कृपा से  हमर बच्चाना जिविते छे । कपटवतिके पुर्व जलमके बात झलझल फम परले हे वेहा ठिन प्राण त्याग करलके । जितिया ब्रत कथाके शिक्षाः   निष्ठासे कर्म कर भगवान फल देवे करतो । असल कर असल हेतु, खराब कर खराब हेतु। छलकपट करलासे दुख पेवा । सन्तानके रक्षाके लगिन हर प्रयास कर । धिरज बानलासे असल फल परापत हेछे। शिलवति (सोमती) ढवक असल मतिमे रह। कपटवती (बेमती) ढवक बेमतमे मत रह। आपन संस्कार, बोलीचाली, शिलस्वभावमे स्थिर बरीके रह । कुल धरम संस्कारके पुस्तानान्तर करे लगिन सन्तानके रक्षा करना हे असल शिक्षा दीक्षा देना चाही । बर्तमान अवस्थामे जितिया पावनः  जितिया पावन अखने संक्रमण कालसे गुजरी रहलेस । एक महर आधुनिक तामझाम से प्रभावित छि जनत दोसर महर आपन मौलिक संस्कार संस्कृति औडमे परिरहलेस । दोसर समाजके चमक दमकसे प्रभावित हे देखासिखि करि रहलेस । अखने जितिया पावन तीन तरिकासे मनछै। जितिया महोत्सव  जितियाके पावन खुसियाली ढवक थारु मौलिक खानपिन हे मनोरन्जनमे बिशेष जोड देलकेस । बिशिष्ट आदमीके बोल्याके सजधजके साथ भाषण बेसी पावन कम बुझछै । आर्थिक रुपमे मांहग छे। जितिया सांस्कृतिक कार्यक्रम  जितिया पावनके अवसरमे थारु कलाकारना नाचगान हे मनोरन्जनमे बेसी जोड देलछे । बौद्धिक विकासमे कम जोडबल करछे। विशेष करिके युवा पिढि बेसी लागल छे । आर्थिक रुपमे मांहग छे।  जितिया पावन हे ब्रत  थारु समुदायमे अज्ञानता हे पुस्तानान्तरके कमिके कारण जितिया पावन मौलिक रुमे कुछ परिवर्तन हेलछे । जितिया ब्रत कारेवाली महिलाना जितिया ब्रत करिरहलेस। यिटा पावनके सामुहिक रुपमे सांस्कृतिक रुपमे आगु बढना जरुरी छे । ब्रतमे घरपरिवारके सहभागिता बाढछि जनत पावनके रुपमे स्थापित हेछे ।   इटहरी–१२, खनार, सुनसरी

छोट खिस्साः डाई

छोट खिस्साः डाई

७६१ दिन अगाडि

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३० भदौ २०७९

बेफ्वा पर्हाइ म बहुट कर्रा रह । वाकर डाई बाबा वाकर कहल जस्टक कापी, कलम किन्डिस । कना हो कलसे ओहि कौनो चिन्टा नि रलहिस  । टभुन ओहिँ स्कुल जाइबेर सर्डि लागल बेरिकअस साँसट लागिस । एकडिन बेफ्वा मन मर्ल स्कुल पुगल । क्लास म छिर्टि कि ओहि वाकर सङ्घर्यन हियाइ लग्लिस । उहि कह लग्लिस्, यि ट नेपाली ब्वाल नि जानट  और का जानि । उ चामचिम पल रहल । हुँकनक परीक्षा हुइलिन । रिजल्ट डेख्के वाकर सङ्घर्यन अचम्म लग्लिन । हुँक्र चामचिम रहलम बेफ्वा कहल, ‘महि नेपाली ब्वाल नि आइट कना नि हो । मै आपन उज्वल भबिस्यक लाक कैक आपन डाई ह कसिक बिस्राई सेकम ? थारु भासा कलक म्वार डाई हो ।