मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

  मंसिर म टुँ ढक्या बोक्क जिहो

९१२ दिन अगाडि

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२७ कात्तिक २०७९

थारु भसाके तिन धार

थारु भसाके तिन धार

९२६ दिन अगाडि

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१३ कात्तिक २०७९

                                                                                                                                                    फायल तस्विर नेपाल भासिक आर जातिय  विविधता के देस छेकी । नेपालके संविधान २०७२ मे १२३ टा जातके पहिचान करल छी । महज अखनतक आरना छुटल जातके पहिचन हावेके क्रम जारी रहल छी । भसा आयोगके खोजके आधारमे थप ८ रा जात फेनसे पता लगलकिस जकर चल्ते येतेकर भसाके संख्यामे बढोतरी हेथै ज्या रहल छी । उना जातके बाहुल्यतता के आधारमे थारुके जनसंख्या चौथा स्थानमे रहल छी ।  थारु भसा पुरु मेचीसे ल्याके पछिम महाकाली तक तराइके बहुत जिल्लामे बोल्थै आवि रहल छी । महज एक जघके थारुसब दोसर जघके थारुसङे बातचित करछी जन त सम्पर्क भसा नेपालीके सहयोग लेछी । यिटा दुखके बात छेकी आपने जातसङे दोसर भसाके परयोग करनाइ ?  वेह्यासे थारु भसाके विकास आर एकताके खातिर थारु कल्याण कारिणी सभा आर थारु निमाङ मेडिया मानक भसा बनावेमे आ–आपन तरिकासे पहल करिरहल छी । यिटाके खातिर बहुत जुम मिटिङ भी करी चुकलकिस । महज वोकरसियाके पहलमे जे काम हाविरहल छी, उनाके विहयाके देखलासे थारु भसाके तिन धार देखा परछी । पुरातनवादी सोच खास करिके पहेनकर सरजक आर परम्परावादी सोचमे आधारित रहल विचारवादीसवके  धारना कुन छी की थारु भसा नेपाली भसाके आधार ल्याके निखेके चाही । नेपाली वरनमलामे जतन्याँ वरन रहल छी, उनाके मान्याता देवेके चाही । जकर चल्ते अखनकर पुस्तासव जे एकटा लैया सोच ल्याके आगु बढलिस उना विचारसे फरक किसिमके धारना राखी रहल छी । थारु भसामे एकोटा बरन नै छुटेके चाही । तकरवाद तत्सम आर आगन्तुक सवदके हकमे भी वेह्या किसिमके मान्याता राखी रहल छी ।  यि किसिमके पुरातनवादी सोच आर बार्निक चस्मा लग्याके थारु  भसाके मानक बनावे लगिन कतन्याँ सहज हेती या नै हेती आवे वला समय मे थाह लागती ?  दोसर बात कुन छिकी थारु बाहेक आरना जातसव भी आपन भसा पहिचानके क्रममे आगु बढी रहल छी, ओहोना के अध्ययन करना जरुरी छी कि नै ? ओकराका आपन मौलिकताके अधार बन्याँ के उच्चारनके आधारमे आपने वरनमलामे सिमित रहल छी । वोकराका नेपालीके सवटा वरन क्यामनी सुकारे साकल्की ? हमराका आपन मौलिकता आर उच्चारनके अधारमे कुछ वरनसव छोड़िके थारु भसा निखे साकवी कि नै ?  मध्य–पुर्विया सोच मध्य–पुर्विया चिन्तनवादीसव फरक धारसे आगु बढी रहल छी । थारु भसाके वरन निर्धारन करे लगिन त्रिभुवन विश्व विद्यालयके नेतृत्वमे बरसो बरसोतक झापासे ल्याके बारा पर्सातक खोज अनुसन्धान, भासिक सर्वेक्छन, ल्याव टेस्ट, कथा रेकर्डिङ लगायत बहुत जिम्मेवारी बहन करल छी ।  वरन पहिचानसे ल्याके वरन निर्धारन, लेखन सैली, व्याकरन, सवदकोस निकाली चुकलकिस । थारु भसाके प्रचार प्रसार आर जग बरिय बनावेके खातिर बहुत जिल्लामे तालिम, लेखन अभ्यासके खातिर पतरिका परकासन आर अनौपचारिक सिछाके सुरवात लगातार अभ्यासके रुपमे करिरहल छी ।  मध्य–पुर्वियासवके सोच कुन छी की थारु भसामे अनावस्यक रुपमे नेपालीके सवटा वरन ढेरियाके भसाके बोझ नै बनावम । भसा सरल आर व्यवस्थित बनावम ।  हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । भसा विग्यानके अधार ल्याके आगु बढेके चल्ते आपन छेतर व्यापक रुपमे विस्तार करिलेल छी । जकर चल्ते झापासे ल्याके बारा पर्सातकके लेखनमे एकरुपता आने लतिन सफल भेल छी । पैछमा सोच खास करिके पछिम महर रहल थारुसवके सोच दुइ धारमे देखा परछी ।  राना थारु  आर डंगौरा थारु ।  अख्ने राना थारुसव हमराका थारु नै छेखिन कहिके थारुसे छुटिके जनजातिमे सुचिकृत भ्या गेल छी । यिटासे थारुसवके बहुत घटा भ्या रहल छी । क्यामकी राना थारुसे छुटलाके वाद थारुके जनसंख्या घटिरहल छी । तकरवाद छुटै जातमे सुचिकृत भेलासे वोखरुका अल्पमतमे परिये जेती । यिना बात वोखरुका मनन करिके पाछु फेनसे थारु जातिमे येवे करती यिटामे दुइ मत नै छी । अख्ने राना थारुसव भसा आयोगके नेतृत्वमे थारु व्याकरन निखेमे जुटी गेल छी ।  डंगौरा थारुसव भी वरन पहिचान करि लेलकिस । वोकरसियाके वरनमे त,थ,द,ध नै भेटलिस जन त आरना चिज मध्य–पुर्वियासङे मेल ख्या रहल छी । ह्रस्व, दिर्धके सवलमे खाली ह्रस्व निखेके अभ्यास करिरहल छी ।  अखनतक पछिम महर बहुत साहित्यिक सिर्जना भ्या गेल छी, आर कुछ समय कृष्णराज सर्वहारी जी गोरखापत्र दैनिकके थारु भसाके पृस्ठमे यिटा सैलीके अभ्यास करी चुकलकिस ।  थारु भसाके मानक बनावे लगना तिनोरो धारके एकेटा जगमे आनना जरुरी छी । वेह्यासे तिनटा धारसे जे फरक फरक विचार आवी रहल छी सव्हैके भासिक चस्मा लग्याके देखना जरुरी छी । तकरवादे बुझे साकती थारु भसा किरङके निखेके चाही ।  जव भसा फरक छी जन त वरन फरक होना स्वभाविक छी । अख्ने जे किसिमके संवाद आर पहल हावी रहल छी, सवका आपने अडानमे रहती जन त थारु भसाके मानक बनावे नै साकती ।  पुरातनवादीसवके आपन सोचमे परिवर्तन करना जरुरी छी । हरेक भसाके आपने सिद्धान्त आर नियम रहछी । जेरङ कोइ फुटबल खेलाडी खेलमे अभ्यस्त भ्या गेलाके वाद जव भलिवल खेले जेती त वे ट्याङ ल्याके मारे खोझती त कुन हेती ? वोहिरङे नेपाली निखाइमे अभ्यस्त हावेके कारनसे आर थारुके वरन निर्धारन प्रकियामे योगदान आर तालिम नै देवेके वजसे यि किसिमके दिगभ्रममे फसल छी । आव बात रहली मध्य–पुर्विया आर पैछमामे । यिना दुनोराके सोचमे बहुत समानता पेल जेछी, क्यामकी थारु भसाके विकासके खातिर एकटा निखेके सैली तयार करल छी । थारु भसा आपन मौलिक उच्चारनके अधारमे निखेके चाही । उच्चारन आर वास्तविक लवज छोडिदेलासे थारु भसा कुन महर जेती पता नै छी ।  वेह्यासे सवका आपन अडान छोडिके लैया सिरासे जानइ जरुरी छी । थारु भसाके मानक बनावे लगिन एकटा साझा लेखन सैलीके विकास करना जरुरी छी । लेखन सैलीके अधार मानिके निखलासे निखाइमे एकरुपता येती ।  तकरवाद सावदिक भिन्नताके बात रहती उना पर्यायवाची के रुपमे आपन स्थान ग्रहन करती । यि किसिमसे सुरुवात करलासे थारु मानक भसा बनावे लगिन सहज हेती । बुढीगंगा–२, बौराह, मोरङ निवासी लेखक हाल थारू आयोगके सदस्य हुइट

मोडलिङमे चम्कटी समुके लोकप्रियता

मोडलिङमे चम्कटी समुके लोकप्रियता

९५५ दिन अगाडि

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१५ असोज २०७९

सागर कुस्मी/धनगढी कलाकार, मोडेल समु चौधरी थारु कला जगतमे लोकप्रिय हुइल बटि । हालसम हुँकार दुई दर्जनसे ढेर म्युजिक भिडियो खेल सेक्ले बटि । थारु कलाकार मन्से मजा अभिनय म्युजिक भिडियो खेल्ना कलाकारके रूपमे हुँकार नाउ आघे आइठ । अभिनसम निरन्तर थारु कलाकार एकदम कम बटैं सांगीतिक क्षेत्रमे । समु चौधरी बहुत संघर्ष कैके आइल बटि । हुँकार कला दिनदिने चाक्कर हुइटी गैल बा ।   हुँकार घर कंचनपुरके महेन्द्रनगर राजीपुर गाउँ हुइन । अब्बे घरहि बैठके कला जगतमे संघर्ष कर्टी बटि, अपन फरक पहिचान बनैटी बटि, अपन करियर चम्कैटी बटि । मोफसलमे बैठके चम्के सेक्ना समुके इ बरवार खुबी हुइन । ओहकान कला क्षेत्रमे हाँठ डारल भर्खर तीन बरस हुइलिन । तीन बरस पहिले समुहे महेन्द्र थारु, विवस चौधरी ओ अपन गोसिया आशिष चौधरीके साठ सहयोगसे इ क्षेत्रमे आइल उहाँ बटैठी । छोटेसे इ क्षेत्रमे लग्ना सपना आझ पूरा हुइल बटिन। इ क्षेत्रमे अपन करियर ओ बनाके स्थापित हुइना लक्ष्य लेके आघे बर्हटी बटि उहाँ । हुँकार रगतमे जो कलाकारिताके नसा छाँगैल बा । उहाँ थारु फिल्म बिरामे फे मुख्य अभिनय निभासेक्ले बटि । समु चर्चित हुइनाके कारण हुँकार इमानदारिता ओ कामप्रतिके निरन्तर अठोट ओ लगनशीलता हो । काममे हरदम ध्यान डेना, मेहनत कैना, मोडेलिङप्रति जिम्मेवार हुइना समुके स्वभाव रहल ओरसे निर्देशक ओइनके लजरमे उहाँ परल बटि । दर्शक ओइनके मन जिट्ना सफल हुइल बटि । उहाँ कठी, मै दर्शक ओइनके मैयाँसे आझ यहाँ पुगल बटुँ । इहे कलासे आझ उहाँ संसार भरके मनै हुँकार नाचगान हेरे पैले बटैं ।   पहिल गीत करि ना ढोटी डान्ससे लेके, अब्बेसमके जबसे हुइल दिल दिवाना, म्युजिक भिडियोसम आइट घरिम स्तरीय अभिनय समुके पहिचान बन्सेकल बा । थारु समाजमे उहाँहे सक्षम कलाकारके रूपमे चिन्हसेकल बा । हुँकार सांगीतिक यात्रा शिखर चुमसेक्ले बा । यहाँसम पुगट्सम समु चौधरी इ क्षेत्रसे भरपुर सन्तुष्ट बटि । उहाँ कठी, दिलसे लग्लेसे इ क्षेत्रसे फेन मजासे व्यवसायिक हुइ सेकजाइठ । अझकल उहाँ अपन जिनगी खुशी बर्हल अनुभुती कर्ठी हरदम । उहाँ कठी- `मै भाग्यसे इ क्षेत्रमे आपुग्नु । जा हुइलेसे फेम आब मोर लाग सबथोक कला जो हो । मै एकठो कलाकार मोडेल हुँ । मोर परिचय कलक इहे हो । इ परिचयसे नाम, दाम, सम्मान, इज्जत डेले बा । मै अभिन आकुर आघे जैना चाहठुँ । सबके मन जिट्ना चाहठुँ । थारु सांगीतिक क्षेत्रमे किल नाही अइना दिनमे नेपाली सांगीतिक फँटुवामे फेन परगा बर्हैना बिचार बा । । महिन यहाँसम पुगैना ओ कलाकारके रूपमे स्थापित करुइया ओ सहयोग करुइयन सक्क्कुहुन सम्झना चाहठुँ । दर्शक ओइनसे ढेर मैयाँ बा ।´

खिस्साः   डस्या ओ डसा 

खिस्साः डस्या ओ डसा 

९६१ दिन अगाडि

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९ असोज २०७९

दिपक चौधरी ‘असीम’      बुधरामके परडेस कमाइ गैलक् ढेर डिन हो गैल रहिस्। लगभग लगभग ढाइ बरस। डस्या लग्गे आगिल रहे ओ बुधराम असौक् डस्या अपन घर परिवारन् सङग मनैना बिचार कैले रहे।  एक डिन बुधराम अपन घरे फोन करल। फोन ओकर जन्नि उठैलिस। डुनुजाने लम्मा समय सम सुखडुखके बाट बट्ओइल ओ बुधराम कहल, असौं डस्या माने घरे आइटु हो बड्डि।  टब बड्डि कलिस, लर्कन लग डसैंह्या लुग्रा लेले अइहो । सालो कठैं लर्का  बाबा आइटे लावा झुल्वा घालब न डाइ।  हाँ हाँ लेके यैम् कहल बुधराम।  टब जन्नि कलिस, कह्या पुग्बो घरे ? डस्यक् डुइचार डिन आगे आ जिहो।  हेर बड्डि बिचार टे ओहे हो । मनो नै सेकम टे ढिक्रह्वक्  डिन भर पक्कै पुगम् कहल् बुधराम । डग्रा हेर्टि रहहो आउर डिन नै हेर्लेसे फेँ ढिक्रह्वक् रोज कह्टि फोन ढैडेलस् ।      हप्टा कर्टि कर्टि डस्या फेन घर अंगना डुवारि डुवारि करे लागल। खेट्वम् लहर लहर ढानेक् बाल झुले लागल । गाउँ गाउँ मन्ड्रा बोले लागल। अहा कट्रा सुहावन कट्रा  चम्पन ।  आझ ढिक्रह्वा । सक्कारेसे लर्का लावा लावा लुग्रम् डेखा परटैं । मनौ बुधरामके लर्का भर लावा लुग्रक् अस्रामे बिल्गठैं। मनौ बुधरामके जन्नि आझ बरा सजल सप्रल बिल्गटिस, माठेम टिक्लि माँगेम सेंडुर हाँठेम चुर्या कानेम बालि नाकेम फोंफि ढेब्रेम लालि एकडम लावा डुल्हि हस।  डुपहर हो गिल, मनौ बुधरामके अटापटा नै हो। लर्का इ घर से उ घर कर्टि खेल्ठैं। बुधरामके जन्नि डग्रा हेर्टि रठिस।         साँझके चार बज्गिल बुधरामके बाबा खोर्यम जाँर, डोन्यम सिढ्रक टिना लेके मिझ्नि खाइ बैठल रहिस्। डाइ जुन हुँक्का पिअट रहिस्। टब बुधरामके बाबा कलिस्, पटुहिया छावा अइना सुन्टहु, अभिन नै आइल ? अट्रेमे डाइ कहलिस् ‘अरे टोहार छावा नै आइ जिट्टि मुइ टब आइ।’  टब बाबा कलिस् ‘अरि बड्डि टैं सुभ सुभ टे बोलिस्। कब्बु मजा बोलि नै सुन्बो। अइम टे कहटेहे पटुहियक् ठे मै सुन्नु टब पुछटु।’  अस्टे अस्टे बाट चल्टि रहे टिनु जहनके बिच, टबे मोटरके आवाज अङ्गनामे सुनाइ डेहल ओ बन्ड हुइल।  टब बुधरामके बाबा कलिस् ‘जा टे पटुहिया हेर, कसिन मोटर आइल ? छावा आइल कि का ?’  बुधरामके जन्नि अङ्गनाम निकरलिस् टब डैबर्वा मोटरमसे उटर्टि पुछल, बुधरामके घर हो इ ?  हाँ कलिस् बुधरामके जन्नि।  टब डैबर्वा कहल, ठारु मनै नैहुइटैं ? –बटैं नि का । बाबा कहटि बलैलिस् अपन ससुर्वै बुधरामके जन्नि।  का हुइल कहटि बाबा बाहर अइलिस्।  –ए अप्ने बाबा हुइ बुधरामके बाबा ? –हजुर  –लि एहोर आइ इ कागजमे साइन करि । –मैं साइन करे नै जन्ठुँ । –ए लि टे अँङग्रिक् छाप लगाइ । –का चिजिक छाप लेहटि । छाप लग्वैटि मनैंया कहल, अप्नेक छावक् लास बुझैना । अट्रा बाट सुन्के बाबा मुर्छा परगैलिस ।  बुधरामके लास मोटर मसे उटरलिस ओ मोटर चल्गैल।  घरमे रुवाबासि मच्गैल।उ सजल सप्रल पटुह्यक् हाँठेक चुर्या फुट्गैल माँगेक सेंडुर पोछ्गैल ।  बुधरामके संगेक संघरियाहे बुधरामके बाबा पुछ्लिस, इ सब कसिक् हुइल भैया ? –कसिक् बटाउँ बरापु । घरे आइक लग हम्रे टिकट कटाके रेलक बङ्के पंज्रे बैठल रहि । अट्रेमे रेल आइल । हम्रे रेलम चहुरे जाइटहि कि रेल नेङडेहल, डाडुक हाँठ छुटगैलिन ओ गिर पर्लैं । टब इ घटना हो गिल।  सङगे खेल्ना सङगे रमैना सपना टुट्गैल।  हाँठेक् चुर्या टुटल माँगेक सेंडुर पोछ्गैल।  कसिन करम लिखल कौन डिन भगन्वाफेँ,  नच्ना गैना झुम्टि हँस्ना डस्याफेँ डसा बन्गैल।  इ खिस्सा काल्पनिक हो किहुसे मेल खाइ टे संजोग सम्झबि।