जितिया पावन बड्या भारी
७५९ दिन अगाडि
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१ असोज २०७९
जितिया पावनके बारेमे आम कहावत छे, “जितिया पावन बड्या भारी, धियापुताके सुताके अपना लेलके भोरी थारी ।
नेपालके पुर्वी तराईमे थारु समुदाय लगायत अन्य समुदाय जितिया पावन मनछै । खास करिके बिबाहित महिलाना यिटा पावन मनछै । यिटा पावन आपन सन्तानके दीर्घायु हे सुस्वास्थ्यके कामना करते ब्रत करछे ।
जितिया के सामान्य अर्थमे जितिके यल, जितेवला हेछे । जितियामे जलम लेल बच्चाके नाम जितुवा या जितनी राखछै । जे बच्चा बरियदरिय हेछे हे खेलमे जितले रहछे जनत वखरु जितुवा, जितना कहछै ।
आसिन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) के सतमी, अष्ठमी, नवमी तिथिमे बिबिध कार्यक्रम करिके जितिया पावन मनछे । यिटा पावनमे माता आपन सन्तानके सुस्वास्थ्य हे दीर्घायुके कामना करछे । यदि सनि दिन या मंगल दिन अष्टमी तिथि परलासे खरजितिया कहछे । खरके शाब्दिक अर्थ कडा, कठोर, कठिन हेछै । सतमी मे नहाय खाय, अष्टमीमे उपासल रहे, तव नवमीमे पारण समापन करछे । तीन दिनके कठोर ब्रत हेलके कारण खरजितिया कहछै । सामान्यतः तिथि मुताविक जितिया दुइ दिनके हेछे ।
ओटगन, उपास, पुजन हे पारणः
सतमी दिनसे घर येङन साफ सुथरा करिके शुद्ध तरिकासे बिबिध पकवान बनछे । तालपोखर या लदीमे पितृ सासके केला पतामे खौरतेल चढछे हे स्नान करिके घर यछे । बिहान भिनसरमे दही, चुडा, केला वा माछ भात, रोटी जे तयार करल रहछे, ओटगन खेछे ।
सतमी मे नहाय खाय, अष्टमीमे उपासल रहे, तव नवमीमे पारण समापन करछे । तीन दिनके कठोर ब्रत हेलके कारण खरजितिया कहछै । सामान्यतः तिथि मुताविक जितिया दुइ दिनके हेछे ।
ओटगनमे ओलके तरकारी, माछ, मडुवाके रोटी कोनो कोनो घर परिवारमे अनिवार्य मानल जेछे । ओट के अर्थ लोक्याके, कोइनि देखे हेछे । सवकोइ सुतलेमे कोइनि देखे, ओटलागिके खानपान करलके कारण ओटगन कहछे । सतमीके रात घरके छतमे या छप्परके चारो कोनमे दही, चुडा, केला आदि पकवान केला पतामे राखिके भगवान जितमहान, पितृ, चिल्हा (गरुड), खटिया आदी देवताके निमन्त्रण लगिन चढछे ।
अष्टमीके दिन उपवास बैठल ब्रत करनीना बिहान स्नान करिके, शुद्ध बस्त्र हे सिङ्गार पटार करिके भगवान जितमहान, पितृ, गरुड, खटियाके बिधिवत पुजा करछे । घरमे बनल प्रसाद, फलफुल चढछे । चिराख पुजारीके धुपदिप देछे हे जितिया ब्रतके कथा सुनछे ।
ब्रत करनिना लाल सिनुर पिन्हिके शुभ संकेतके रुपमे जितमहान, गरुड, खटियाके लाल सिनुरके टिका लग्या देछे । पितृके चह्रल प्रसाद घरके आदमी नय खेछे ।
नवमीके दिन हेठपहरा पुजा समापन (पारण) करिके मूर्ति बनल छे, जनत बिसर्जन लदी, पोखरमे करछे । मूर्ति बनल नय छे, जनत प्रतिमा स्थापना करलनाके जलप्रवाह करछे । घर परिवारजन, इष्टमित्र मिलिके प्रसाद ग्रहण करछे । ब्रत करनीना आपन खुसी भोजन, प्रसाद ग्रहण करिके ब्रत समापन करछे ।
जितिया ब्रत कथाः
महाभारत लडैमे गुरु द्रोणाचार्यके छल करिके पाण्डवना मारल की छल सेहास वकर बेटा अश्वत्थामा बदला लेवे लगिन पाण्डव वंशके संहार करेके प्रतिज्ञा करलकि छल । महाभारत लडै ओरली तव एक राती अश्वत्थामा पाण्डवके शिविरमे पैंसीके पाण्डवके पांचोरा बेटाके मारी देलके ।
मतर अभिमन्यु पत्नी उतरा गर्भवती रहेक, तव ब्रह्मास्त्र फेकिके गर्भ गिरावे चाहलकी । भगवान श्री कृष्ण वकर गर्भके रक्षा करलके मतर, जव समय पुगलि त मृत पुत्रके जलम देलके । मतर भगवान श्रीकृष्ण उटा मृत बच्चाके जिवित करिदेलकै, सेहास जिवित पुत्रिका नाम रहले । मृत्युसे जितिके यल कारण से जिवितपुत्रिका कहते कहते जितिया हेले । पाछु वेहा राजा परीक्षित नामसे जानल गेलै ।
वहिने दोसर कथामे गन्धर्वराज जिमुतवाहन नामके बड्खा प्रतापी, धर्मात्मा हे त्यागी राजा रहेक । वकर मातापिता बृद्ध अवस्थामे राजपाट त्यागिके वनप्रस्थ तपस्या करे गेले, सेहास जिमुतवाहन मातापिताके सेवा करे वनमे गेले । वतेकरा नागमाता के दुखित हे कानते देखिके जिमुतवाहन वकर दुःखके कारण पुछलके ।
नागमाता कहे लागले, हे देख, हमे नागके माता छेकिन । पंक्षीराज गरुड महर सवना बच्चा नागके संहार करे लागले सेहास बच्चानाके जिवित राखे लगिन । हरेक दिन एकटा नाग (सांप) गरुडके भोजन करे देवे परछे । आजु हमर बेटा चंखमुण्डके पला छेके । बेटा चंखमुण्डके मायाके कारणसे हमे दुखित छिन हे कानछिन ।
तव राजा जिमुतवाहनके दया लागले हे कहलके, हे देख माता, मन कानरोव आजु हमे गरुडके भोजन हेवे । हे बस राजा जिमुतवाहन लाल चादर होडीके सुति रहले । पंक्षीराज गरुड जी वकरा झपटीके नोहमे लटक्याके पहाडमे ल्यागलके । आर बेर सांपना सकबक करेक मतर यिवेर सकबक नय करलके कारण वकरा पुछलके । तव राजा जिमुतवाहन सवना कथा सुन्या देलकै ।
जिमुतवाहनके त्याग, बलिदानसे गरुड राज कहलके, हे राजन, जिमुतवाहन आजु दिनसे नागके बालबच्चानाके नय मारओ बचन देलके । वेहा दिनसे नागमाता सन्तानके जिवित राखे साकलके । सेहास जिमुतवाहन से जितिया पावन हेले कथामे छे ।
तेसर कथा थारु समुदायमे प्रचलनमे छे । एक समयके बात छेकी दय सोमती हे बहिन बेमती रहेक । दोनो मे मिलान असले रहेक मतर सोमती असल बिचारके रहेक जनत बेमती आपने मतिमे चलेक। सेहास श्रापके कारण दिदी सोमती गिधिन, बहिन बेमती खटिया हेलीछल । कनचनवटी राजमे मलयकेतु राजा रहेक हे नर्मदा लदीके बलथरीमे बडकी पांकरके गाछ रहेक हे वेहारा गाछीमे गिधिन हे धोनरीमे खटियाके बास रहेक ।
एक दिनके बात छेकी । जलनाना डाली बोकिके स्नान करे यले हे बहुत प्रेम भावसे पुजा करते गिधिन हे खटियारा देखलके । तव पुछलके, तोरा का कुन करछे । जलनाना जितिया पावनके बारेमे बतलके। बोखरुका दोनो बहिन जितिया पावन करे लगिन प्रण करके।
सतमीमे ओटगन खेलके अष्टमीमे उपास रहले । बेहा अष्टमीके दिन सहरके बडका बेपारीके मृत्यु हेलै हे । वेहारा पाकर गाछ लगत नर्मदा लदीके भितामे गाडि देलके । खटिया दिनभर उपासलके कारण जब रात हवेक, तब खटियाके भुख सतावेक, हे खिटियाके रहल नय गेली, राती के देखती कहिके मुर्दा ख्याके छुधा तृप्त करलके । मतर गिधिन धैर्य धारण करिके जितियामे उपासे रहलै ।
कुछ दिन वाद गिधिन हे खटिया मोरले, तव फेन वेहारा कनचनवटी राजमे मानुस तनमे जलम लेलके । दोनो बहिन मे दिदी गिधिनके नाम शिलवती हे बहिन खटियाके नाम कपटबती (कपुरावती) राखलकी । दोनो बहिन जहिने बाढने जैक वहिने एकसे एक सुनरी हेली । सिलवतीके बिहा साधारण परिवारमे हेली हे सातरा बेटा हेले । बेटाना बाढने गेली । सबकोइ इमानदार, कर्तब्य परायण रहेक सेहास राजा मलयकेतुके दरवारमे काम करे लागले ।
कपटवतीके बिहा राजा मलयकेतुसे हेली मतर वकरा बच्चा जलम लेते मातर मोरी जैक । वकर सातोरा बच्चा जिवित नय रहले । यिटासे रानी कपटवतिके बढिने डाह उठली हे शिलवतिके सातोरा बेटाके मुडी काटीके धररा माठमे कसिके लाल बरथीसे मुख बान्हीके शिलवति कते पठ्या देलके ।
शिलवति भगवान जितिया पावन करेक सेहास भगवान जितवहान सातोरा बेटाके माटिके मुडि बन्याके जोडी देलके हे अमृत छिटिके जिवित करि देलके । उमहर कपटवती शिलबतिके बेटाना मोरल खबर सुने लगिन, छटपट करेक मतर जिवित हेल खवर पेलके । काटलना मुडी सरिफा फलमे बदलि गेले ।
तव हारी हदियाके कपटवति पुछते पुछते शिलवतिके घरमे पुगली । शिलवति बहिन कपटवतिके पुर्व जलममे कथा फम कर्या देलकै, ते खटिया छेलै, हमे गिधिन । जितिया पावनमे तें उपास तोडले सेहास तोर बेटा एकोटानी रहलो हमे उपास नय तोडनी वकरे प्रतिफल भगवान जितमहानके कृपा से हमर बच्चाना जिविते छे । कपटवतिके पुर्व जलमके बात झलझल फम परले हे वेहा ठिन प्राण त्याग करलके ।
जितिया ब्रत कथाके शिक्षाः
निष्ठासे कर्म कर भगवान फल देवे करतो । असल कर असल हेतु, खराब कर खराब हेतु। छलकपट करलासे दुख पेवा । सन्तानके रक्षाके लगिन हर प्रयास कर । धिरज बानलासे असल फल परापत हेछे। शिलवति (सोमती) ढवक असल मतिमे रह। कपटवती (बेमती) ढवक बेमतमे मत रह। आपन संस्कार, बोलीचाली, शिलस्वभावमे स्थिर बरीके रह । कुल धरम संस्कारके पुस्तानान्तर करे लगिन सन्तानके रक्षा करना हे असल शिक्षा दीक्षा देना चाही ।
बर्तमान अवस्थामे जितिया पावनः
जितिया पावन अखने संक्रमण कालसे गुजरी रहलेस । एक महर आधुनिक तामझाम से प्रभावित छि जनत दोसर महर आपन मौलिक संस्कार संस्कृति औडमे परिरहलेस । दोसर समाजके चमक दमकसे प्रभावित हे देखासिखि करि रहलेस । अखने जितिया पावन तीन तरिकासे मनछै।
जितिया महोत्सव
जितियाके पावन खुसियाली ढवक थारु मौलिक खानपिन हे मनोरन्जनमे बिशेष जोड देलकेस । बिशिष्ट आदमीके बोल्याके सजधजके साथ भाषण बेसी पावन कम बुझछै । आर्थिक रुपमे मांहग छे।
जितिया सांस्कृतिक कार्यक्रम
जितिया पावनके अवसरमे थारु कलाकारना नाचगान हे मनोरन्जनमे बेसी जोड देलछे । बौद्धिक विकासमे कम जोडबल करछे। विशेष करिके युवा पिढि बेसी लागल छे । आर्थिक रुपमे मांहग छे।
जितिया पावन हे ब्रत
थारु समुदायमे अज्ञानता हे पुस्तानान्तरके कमिके कारण जितिया पावन मौलिक रुमे कुछ परिवर्तन हेलछे । जितिया ब्रत कारेवाली महिलाना जितिया ब्रत करिरहलेस। यिटा पावनके सामुहिक रुपमे सांस्कृतिक रुपमे आगु बढना जरुरी छे । ब्रतमे घरपरिवारके सहभागिता बाढछि जनत पावनके रुपमे स्थापित हेछे ।
इटहरी–१२, खनार, सुनसरी