मुक्तिक सपना

मुक्तिक सपना

३०० दिन अगाडि

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२ साउन २०८१

ठुम्रारके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल

ठुम्रारके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल

३०३ दिन अगाडि

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३० असार २०८१

साहित्यकार मानबहादुर चौधरी पन्नाके बरका पुहनाइमे ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल बा ।  असार २९ गटे सनिच्चरके काठमाडौं, कीर्तिपुर, पाँगास्थित बरघर रेस्टुरण्टमे हुइल कार्यक्रममे साहित्यकार मानबहादुर पन्ना कहलाँ, ‘थारु साहित्यमे समालोचना विधा कमजोर बा । यकर कारन हमार थारु पोस्टाके चर्चा परिचर्चा हुइ नइ सेकल हो ।’ ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके साहित्यिक बखेरीसे अपने बहुट प्रभावित हुइल कहटि पन्ना आगे कहलाँ, ‘मोर गृहजिल्ला सुर्खेतमे मै अध्यक्ष रहल लखागिन थारु उत्थान मञ्चसे पाँच श्रृंखला थारु साहित्यके बखेरी करले बटुँ । आब इहि निरन्तरता डेहम् ।’ ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके संयोजक डा कृष्णराज सर्वहारीके घरगोस्याइमे हुइल कार्यक्रममे शत्रुघन चौधरी, अर्णव चौधरी, नेपालु चौधरी, गोपाल चौधरी, सुनिता चौधरी, गणेश वर्तमान, नन्दुराज चौधरी, दाङ, गढवा–७ के वडाध्यक्ष राहुलदेव चौधरी, कुछत नारायण चौधरी, डा रामबहादुर चौधरीलगायट स्रस्टालोग आअ पन रचनाके सगसंगे शुभकामना डेले रहिट ।  उ अवसरमे इहे असार २७ गटे संस्कृति मन्त्रालयसे क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार (कर्णाली प्रदेश) पाइल साहित्यकार मानबहादुर पन्नाहे सम्मान फेन कइ गइल रहे । पन्नाके ढुकढुकी (मुक्तक, कविता २०५७), किसानके जिन्दगी (खण्डकाव्य २०६१), सख्या नाच (गीत २०७०), ककनदरान छोटकी (खिस्सा २०७०), एक गोरुवक् बटकुही (हाँस्यव्यंग्य सहलेखन २०७५) थारु भासाके पोस्टा ओ हाम्रो थारु समाज र संस्कृति (२०७९) अनुसन्धानमुलक पोस्टा प्रकाशित बटिन् । ओस्टक संस्कृति मन्त्रालयसे डोसर थारु स्रष्टा बुद्धसेन चौधरी फे मधेश प्रदेशसे इ बरस क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार पइले बटाँ ।  डोसर समाचार अन्सार ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके २०८१ साउनके अन्टिम सनिच्चरके हुइना १००औं साहित्यिक श्रृंखलाहे भव्य बनाइक लग डा कृष्णराज सर्वहारीके संयोजकत्वमे मूल टयारी समिति बना गइल बा । जेम्ने नन्दुराज चौधरीके संयोजनमे आर्थिक, शत्रुघन चौधरीके संयोजनमे प्रचारप्रसार, सिताराम चौधरीके संयोजनमे मञ्च व्यवस्थापनलगायट समिति बना गइल बा । साउनके पहिला सनिच्चरके बैठकमे थप समिति बना जैने बा । 

प्रनव आकाशके ६ गजल 

प्रनव आकाशके ६ गजल 

३५३ दिन अगाडि

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१२ जेठ २०८१

प्रनव आकाश १ जोगि भुइ घस्क खेल्वार ड्यास गलाइट  नक्ली ठर्वन जस्टक जन्निन मुन्ड्री घलाइट अट्वल्या जिउगरक उराइटा डुरिक चिरै  टरसे जस्गरक मुस्वन अट्वा ढलाइट ब्यार खाक चौकस नि मान्ठुइट गिउरन  सङ्ग रहारङ्गिट कर अखोरे बलाइट गाउँम बन्वक राहा बुटैना ख्याल बा  लर्का घरम हाँठ हाँठ सलाइ चलाइट । २ यी बजार म ओसिन का पा जैठा डेख्क डुनिया फे लस्गरक आ जैठा ठरुवा परड्यास जैना, घर बिस्रैना  आसम यहोर जन्निक, साँस जा जैठा रैटीक कुठ्लिम एक डाना डर्या नै हुइस  जिम्दर्वक घरम सड्ड भ्वाज खा जैठा  जौन ठाउँम ढ्याउर डुखी मनै बाट  उह ठाउम भगन्वक भजन गा जैठा । ३ कहुइया कैडेल करम जाट्से खोटी बा  खुसि लिख्ना लिल्हार फे ट छोटी बा गाउँ चिर्वाइन गन्ढाटा, टिह्वारक डिन  घरक भन्सम जरल, फुस्र्या रोटि बा लर्का रङबिरङ्क रिबनम ख्यालट  छाइक भर कुल्मुलाइल, पुरान झोटी बा डिउटा जिन रिसैहो रै, छाँकी डेहटु  किन नि सेक्नु करुवा, फुटल टोटि बा । ४ पैल्ह ट बुझ परल जिन्गिक सार ह का डोस लगैठो बिचारा लिल्हार ह डोकानम आढुनिक गफ लरैना मनै साइट बिगारल कैख रगेट्ठ बिलार ह गँवल्यन लग्मानी हुइल ठेसे ठर्वक घर आक सड्ड(सड्ड  पिट्ठा पर्यार ह ड्वासर जन्हक कमैया लागल ट उ बहुट पाछ पज्गुराडारल आपन बिचार ह । ५ भुवर बिहानसम छोट्की, ढान कुट्टी बा  खवर नि पाइट कब काम, कब छुट्टी बा बखारी भरक्टे मुस लक्लक्याइल बाट  गाउँम ढान डुढी होक बल्ल फुट्टी बा जन्ना मटाँवा बेराम बा, सब्ज ठोप्री बजाइट के सम्झी गाउँक बल्गर हर्झौखी टुट्टी बा बिचारी डिडिबाबुन, डाइह ढुइना कर्रा पर्ठिन अरोट करोट लौरा आम्हि, पठ्रीम मुट्टी बा । ६ पल्पल पल्पल निम्झटा अजर्या राट आम्ही बट्वैना पलि बा जिन्गिक बाट आब पो मै अक्कल्हे बाटु, डुखक ब्याला सुखक ब्याला बहुट रलह पक्रुइया हाँट सुख्ला रुख्वा हुरि, पानीसे बचैटी रहल चिरै अइबो नि कर्ल घुम्टा समझ्क ठाँट जिम्दर्वा घनि घनि अइठा रकट चुस बेन्हुक एकचो चुस्क चुपाजैठ, उरुसक जाट ।  

जुडीसितोल हे सिरुवा पावन

जुडीसितोल हे सिरुवा पावन

३९४ दिन अगाडि

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२ वैशाख २०८१

पृष्ठभूमिः बिक्रम सम्बत साल अनुसार वैसाख १ गते लया बछर (नयाँ वर्ष) सुरु हेछै । कोचिला थारु समुदायमे यीटा दिन बिषेश रुपसे मनछै । छोटना के मुडी मे पानी द्याके आशिर्वाद देछै, जनत बोडनाके गोडा मे पानी द्याके आशिर्वाद लेवेके चलन छै । नव विवाहित जोडी सिरमोर फुल जित लदी पोखरमे जल प्रवाह करछै । सिरुवाके बारेमे बहुते झनाके जानकारी नय हवे साकछै । सेहास सिरुवा के बिषयमे यीटा लेखमे जानकारी देवेलगिन प्रयास करनिस ।  सिरुवा पावन थारु समुदायके संस्कृति छेकै । बछरके अन्तिम चैत महिनामे बहरजत्रा पुजा करछै । ग्रामतीमे गोटे बछर भोगल रोगबियाद, दुखसांघ, पीडाकष्ट सवना बहिके जो हे लया बछर मे फरे यीना रोग, दुःख, पीडा घुमी नय आवियान कहिके डिहवारनी, ग्रामथान, संसारीमाय, मलङ, कुलदेवता, पाँचोदेवीके सुमरीके धामी तान्त्रिक विधिसे चलान करिके बही देछै । वेहा दिन से आपन कुलदेवता, ग्रामथान, डिहवारनी के तीन दिन धुपदिप से सांझवाती द्याके यीटा बछरके बिदाई हे लया बछरके स्वागत करेके चलन छै । बहरजत्रा पुजाके वाद सामुहिक रुपमे कुप, इनार, डगरबाट सफा करैक । वहिने चैतके रानल वैसाखमे ख्याके चलन छै । वैसाख १ गते कादमाटी से लेढीपेढीके भौजी, गोतिया, ननद संगे हँसिमजाक करिके मनवैक । वैसाख १ गते राजाके (थानके राजा, देशके राजा) घरमे जुडीसितोल मनावैक । तकरबाद वैसाख २ गते आम मलवैया आपन घरमे जुडीसितोल मनावैक । अखने वैसाख १ गते जुडीसितोल मनावेके चलन यलैस । जुडीसितोल मनावेके विधिः थारु समुदायमे कुलदेवता के बासस्थान के सिरापाट कहछै । सिरा के अर्थ शिरस्थ (मूल) पाट के अर्थ बास हेछै । कुलदेवता बासस्थान के भनसी घर या गहवर कहछै । कुलदेवताके भनसी घरके इसानकोण मे स्थापना करछै । थारु समुदाय मे कहवी छै ‘सिरा न पाट के गोड लाग टाट के’ कहेके मतलव आपन कुलदेवता के सफामन से पुकार करला से बहुतो बिघ्नबाधा आप्सेआप सामाधान हेल बहुतो प्रमाण छै । बछरके सुरुमे घरके शिरस्थ कुलदेवताके शुद्ध लज, फुलपती, धुपदिप अर्पण करिके आशिर्वाद लेछै । आपन आपन कुलके देवी देवता फरक फरक हवे साकछै ।  तकरबाद ग्रामथान मे स्थापित दरदेवता, धामी धमियेन, हातीबन्धा (गणेश जी), बघेसरी (भवानी जी), लक्ष्मीडारी, अघोरीनाथ, डिहडिहवारनी (बास्तु), संसारी के लजफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । यकरवाद ग्रामतिके बयोबृद्ध या गछदार, गुरुवा धामीके पइर (गोडा) मे जलफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । तव घरके बयोबृद्ध, मातापिता, ककाककी, ददाभौजी के गोडामे जलढारीके आशिर्वाद लेछै । वहिने आपन से छुमीनाके मुडीमे जल द्याके जुडीसितोल कहिके आशिर्वाद देछै । जुडीसितोल हे सिरुवा के अर्थः जुडी के अर्थ जुड (ठण्डा) सितोल के अर्थ सितल (शान्ति) हेछै । बैसाख मे गर्मी धमकल रहछै सेहास जुड (जुर) पानी से मन सितल (शान्ति) हेछै । सेहास बितल बछरके पिडासे दुखित हेल मन हे गर्मीसे तमसल मनके जुडावे लगिन सितल, जुड जल ढारीके कञ्चन शरीर रहोक कहिके आशिर्वाद देवेलेवे कारण जुडीसितोल कहछै ।   बहरजत्रा पुजाके बाद लया बछरमे रोगबियाद, हैजा, फौती, दुःख कष्ट नय भोगे परोक । सुख, शान्ति, निकेकुसले कञ्चन शरीर रहोक कहिके बछरके सुरुमे (सवसे पहिना) आपन कुलदेवताके सिरापाट, ग्रामथान, मातापिता, गुरुवा, धामीके सुरुमे जलफुल ढारकरिके सिरासे आशिर्वाद लेवेके कारणसे सिरुवा कहल गेलैस ।  राजधामी गुरुवा बैसाख १ गते पाँचोदेवती (पंचहायान) हांसपोसामे के पहिना पुजा करछै। तकरबाद इटहरीमे बैसाख २ गते उतर दिसर सिरामे कचना महादेवके जाग्राम पुजा किर्तन करछै । सिरा उतरमे बैसाख ३ गते इटहरीके कचना महादेवके पुजा करलके बाद भाठी दखिन दिसरके थानमे पुजा ढारते गेलके कारणसे सिरुवा कहछै । अखने बछरके सुरु बैसाख १ गते जुडीसितोल के सिरुवा पावन के रुपमे मान्यता पेलकैस । विहाके सिरमोर (फुल) बिसर्जनः नव विवाहित जोडीके सिरमोर (फुल) विवाह के वाद जतनसे सांठीके राखछै । सिरमोरसे झरल फुलनाके समटिके जतन करे परछै । तव बैसाख १ वा २ गते जित लदी या पोखर मे बिसर्जन करे परछै । फुल बिसर्जन के बाद विवाहित जोडी पानी मे हथरीके घुङघरी, झुना, माछ या कुन चिज पहिना पकडछि कि खाली हाथ रहछै, उटासे वकर छौडा कि छौडी बच्चाके जलम अनुमान जोखना कहिके जनबिश्वास छै । झुना भटेलासे छौंडी बच्चा, घुङघरी भेटलासे छौडा बच्चा हवेके प्रवल संभावना रहछै । तकरबाद जलकुमारीके धुपदिप हे फुलघोडा चढछै । जलकुमारी से सुखमय बैबाहिक जीवन हे सन्तान के कामना करछै ।  सिरापाट (कुलदेवता) मे अर्पण विधिः आपन आपन कुलदेवता के जुडीसितोल या सिरुवामे बिशेष करिके पवित्र मनसे गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवताके आपन पाट (स्थान) मे आसन बान्हीके बैठे लगिन गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवता फरक फरक हेछै । मुख्य रुपमे शिवपार्वती, गयाँ (गांगो), देवी भवानी (बघेसरी), काली, बामत, गहिल, लक्ष्मी (भण्डारनी), बिसहरा (नाग), मुलदुवारमे (प्रवेशद्वार) रक्षा करेलगिन देवीके बाहान सिंह दुनु काते रहछै सेहास सिंहदुवार अपभ्रमसमे सिदुवार बोलचालमे कहछै । बहारसे नकारात्मक शक्ति घर येङनमे प्रवेशमे रोक लगावे लगिन सिदुवारीमे नरसिंह, हलुमान ठाकुर, भैरव के स्थापना करल रहछै ।  हाथगोड धोवीके एकलोटा जल भोरिके, फुलपती, धुपदिप हे पान प्रसाद चढ्याके कल जोडिके कुलदेवतासे बिन्ति गोचर अनुरोध करछै, ‘हे कुलदेवता, हे पांचोदेवी, राजा राज छोडने राज नय भेटछै देवता पाट छोडने से पाट नय रहछै । सेहास आपन राजपाट समारीके स्थीर बरिके बैठ । हमर घरगैरना, बालगोपाल, सखासग्तउन के निके कुसले राखियान । हमे मलवैया छेकिन । येंठ खेछिन झुठ बोलछिन । घडीघडी अपराध करछीन । जे जानछुन वतन्या करछुन । जे जुरलु से चढनुस । जे नय जानछुन से नय चढनुस । अधना अज्ञानी जानीके हमर गलती क्षमा करिदिहेन । तोर शरणागत छुन दया कर, दया कर, दया कर ।’ कुल देवता कि जय, पाँचोदेवती कि जय । यतन्या बिन्ति करिके लोटाके जल ढारी देछै हे गोड लागछै ।                                                                                                 लेखक रामसागर चौधरी उपसंहारः सिरुवा थारु समुदायके सांस्कृतिक धरोहर छेकी । यकर महत्व हे फाईदाके बारेमे छलफल बहस चलना जरुरी छि । थारु समुदाय सिरुवा पावनके जीवन्त राखेलगिन हर प्रयतन करोक । सिरुवा पावनमे गुलगुलिया, पुव, करिबरी, चितकोव रोटी, खिर, सोहारी औठ रकमके पकवान के मजा लिहेन । लया बछर मे बिकृतिके रुपमे प्रवेश करल जाँड, दारू मे फजुल खर्च कम करिके झैझगडासे दुर रहिके आनन्दसे मनावम । कञ्चन शरीर हे प्रफुल मन बनोक सिरुवाके हार्दिक शुभकामना । इटहरी–१२, खनार, सुनसरी

कैसिक हेराइटा थारू पहिचान ?

कैसिक हेराइटा थारू पहिचान ?

५५८ दिन अगाडि

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१६ कात्तिक २०८०

असिराम डंगौरा थारू कला संस्कृति पहिचान बचैना अभियानमे थारू बुद्धिजीवी अगुवा साहित्यकार युवा ओ पत्रकार लोग खास कैके करिब दुई ढाई दशकसे जमके लागल बाटै। कला संस्कृति थारू पहिचानके बारेम हर पत्रकार साहित्यकार बुद्धिजीवी हुक्रे कमसे कम दश बाराठो जनचेतना डेना लेख रचना पक्कै लिख सेकल हुइहि। दुई ढाई दशकके समयमे सैंयो अभियान नारा बैठक गोष्ठी कार्यक्रममे सहभागी हु सेकल हुइहि ।  मनो कोइ फरक नाइ परल, बडलटि रहल बैज्ञानिक ओ इन्टरनेटके जवानामे इ अभियान लेख रचना बैठक गोष्ठी सब सुखल बालुम पानी बरैना हस हुइटा। जब सम कार्यक्रममे रठि, टबसम पहिचान बचाइ हस लागठ । मने कौवा करैटि रहि, सुक्खुन सुखैटि रहि, अस्टे अवस्था बा थारू पहिचानके अभियानमे लागल मनैन्के। दिन प्रति दिन समाजमे उच्छृङ्खल कला संस्कृति ठाउँ बनैटि जाइटा । थारू पहिचान लोप हुइना स्थिति कैसिक पुगल टो ? यकर खास जर बुझेक् लग हमहन २०५७ साल ओर फेरसे उलिटके हेरेक परि।  तत्कालिन प्रधानमन्त्री शेरबहादुर देउवाके पहलमे २०५७ सावन २ गते कमैया मुक्ति घोसना कैगिल। यी घोसना बँधुवा कमैयन्के लग लावा जिन्गिक आस लैके आइल। हर कमैया परिवारके मनैन्के मनमे अनेकौ सपना भरल । हुइना टो हर मनैन् अपन सपना डेखे पैना अपन जिन्गि स्वतन्त्र जिए पैना अधिकार रहठ।  डुखेक बाट यहे रहल, सरकार मुक्ति टो डेहल, मनो जिन्गि जिना जुक्ति नाइ डेहल।                                                                                                                                            लेखक असिराम डंगौरा भरल बर्खम कमैया मुक्ति घोसना करके कमैयन्के भरमे खेटि करूइया किसान ओ किसन्वक भरमे चुल्हा बर्ना कमैयन्के बहुट कर्रा फे कर डेहल। कमैया राखे नाइ पैना हो खेटि कैसिक लागि, कमैया लागे नाइ पैना हो, कुठ्लीम छाक टर्ना धान, चाउर नाइ हो। अपन लरका परकन का खवाइ, भुख कैसिक मेटि ? कमैया मुक्ति घोसना पाछे किसन्वक घारी बारीम बैठल कमैयन् अपन गाउँ ठाउँ छोरके लर्कन्के सुखि जिन्गिक सपना बोक्के औरे ठाउँ शिविर बैठे जाइ पर्ना हुइल। खास करके यहाँसे फेन थारू कला संस्कृति थारू पहिचान ओरैना सुरूवाट हुइल।  २०५२ सालसे माओवादीके उदयसे फे कुछ थारू पहिचानमे असर टो परल, मनो खासे कुछ फरक नाइ रहे । माओवादी योद्धन्के कहाइ खालि उच्छृङ्खल मेरिक समाजमे नाइ पच्ना नाचकोर न करो किल रहे ।  हर गाउँ गाउँसे कमैया शिविर ओर जबसे बसाइँ सरे लग्नै, टबसे थारू गाउँमे हर बरस डसैँहा मन्ड्रा बोल्ना फे मुश्किल परे ।  सचमे एकचो गहिर विचार करके अपन पुरान दिन याड करि, पहिले थारू कला संस्कृति नाच कोरमे मन्डरिया ओ नचनिया के रहे ?  पक्कै फे ऊ मन्ड्रा बोलुइया ओ मन्ड्राक टालमे फिरहारा मार मार नचुइया मनैया एकठो कमैया परिवारसे बिल्गिट । उ अस्टिम्कीक् गिट गउइया, झुम्रा सखियम नचुइया, भोजेम माँगर गउइया, महिला ढेर जैसिन कमैया परिवारसे बिल्गैं । डफ, मन्ड्रा, मन्जिरा कस्टार बजैना सब कमैया परिवारमे अभिन सम मिलि।  कमैया मुक्ति समयके माग रहे । ओकर पाछक् व्यवस्ठापनके समय भोगल मनैन् पटा मिलल् । मनो थारू संस्कृतिक पहिचान मेट्ना एकठो बरा कारन कमैया मुक्ति हो कहलेसे  फरक नाइ परि ।  कमैया मुक्तिसे पहिले थारू कमैया हुक्रे डिनभरिक कामके ठकान डट्करावन मेटाइक लग संघरिया–संघरिया मिलके डफ, मन्ड्रा बोलके साँझके नाचगान करैह । हर जोटे बेर सजना गिट गाईह, इहिनसे गाउँघर खेट्वा चैनार रहे। थारू गिट नाचगान भेग्वा अंगौछा लगुइया, हेल्का डिलिया, सुप्पा, छट्रि, बिर्चि, खटिया, मचिया बनैना सिप प्राय कमैयन ठन रहे। कमैया मुक्ति हुइल पाछे शिविर बैठे जैना हुइलेक ओरसे मन्डरिया एक शिविरमे, नचनिया डोसर शिविर टो गुरूवा अघरिया टिसर शिविरमे बैठे जैना मजगुर हुइनै। ऐसिके हर गाउँसे कमैयनके नाउँमे थारू कला संस्कृति ओ पहिचानके फे सास टुटगिल। छारा कर्ना क्रममे मन मिल्ना संगसाठ यारि दोस्ती छुटल । शिविरमे सत्तार गाउँक मनै सक्हुनसे मन राग नाइ मिले सेकठ, टबमारे रहल प्रतिभाके फे डबके डम टुटगिल। कमैया मुक्ति हुइल पाछे शिविर बैठे जैना हुइलेक ओरसे मन्डरिया एक शिविरमे, नचनिया डोसर शिविर टो गुरूवा अघरिया टिसर शिविरमे बैठे जैना मजगुर हुइनै। ऐसिके हर गाउँसे कमैयनके नाउँमे थारू कला संस्कृति ओ पहिचानके फे सास टुटगिल। थारू कला, संस्कृतिके पहिचान रहै कमैयन् । ऐसिक कहे बेर हजुर हुक्रन लागठुइ कमैया किल सबकुछ जानैह कि का ? मनो सच इहे हो, जब गाउँमे नाचगान हुए, टब दस मनैमे खाली ३ जे निम्न वर्गिय किसान कलाकार डेखा परैह, बाँकि सब कमैया परिवारसे रहै। यकर मटलब इ नाइ हो कि किसन्वन्के कुछ भुमिका नाइ रहे । कमैयन्के नाचगान कर्ना वाटावरन डेना टो किसन्वाक हामे रहे। थारू किसन्वनमे सयमे डुइठो रहल हुइहि, जे कमैयन कमैया सम्झना, नि कमैयन फे अपन परिवार सम्झना । किसन्वनके इटिहास फे बहुट बा । उ टो खासल अपन भोट बैंक बनाइक लग सरकार कमैया मुक्ति घोसना करल । गैरथारू कमैया, हलियनके अवस्ठा का रहे, कत्रा रिनमे रहै, इ नाइ जन्ठु, मनो थारू कमैयनके मुक्ति करे पर्ना मेरके बँढुवा फे नाइ रहै। हर थारू कमैयनके काम करटि रहल किसन्वक ठे ढेर से ढेर १०÷१५ हजार सौंकि रहल हुइ । नि ओत्रा फे नाइ रहल हुइ । टब फे मुक्ति हुइल पाछे फे बचल रिन कटाईक लग बहुट कमैया काम करके माघ पुगैनै।  हाँ, थारू कमैया भूमिहिन रहै कलेसे गाउँ ठाउँम रहल ऐलानी जग्गा वितरण करलेसे फे हुइना रहे। ऐसिक हेर्लेसे उ समय फे सरकार कमैया मुक्तिके नाउँमे थारू मत विभाजन करके  थारू एकता टुरल । लाल पूर्जाके सैचिन एकठो कागज पक्राइल । जग्गा कहाँ बा, पटै नि । अभिन सम कमैया उचित व्यवस्ठा कर्ना बाँकि बा। अब्बैके समयमे फे संघीयताके बहानामे थारून् डबाइक मारे जान बुझके थारू जात राजनितिम कमजोर हुइना मेरिक प्रदेश विभाजन करल बा। ओरौनिम थारू पहिचान बचैना अभियानमे लागल बुद्धिजीवी, साहित्यकार युवा, पत्रकार हुक्रन अत्रै कहम कि यदि हजुर हुक्रे थारू पहिचान बचैना चाहटि कलेसे कमैया मुक्तिसे पहिले अपनेक गाउँघरमे कौन मनैया डफ, मन्ड्रा बोलाए, सजना ढमार मैना सखिया अस्टिम्कीक् गिट के गाए ? पटा करि ।  ओ, वहाँ हुक्रन बहुट सम्मानपुर्वक ओइन समय समय गाउँ नानके गिट, कला संस्कृति सिप सिखा मांगि । ढोटि पोक्टा पारे, डफ मन्ड्रा बोलाइ, गाइ सिखि टो थारू पहिचान बचि । डिजेक टालमे पुठ्ठम मन्ड्रा बाँन्ढके मन्ड्रा बोलैना नाटक करके हमार पहिचान कबु नाइ बचि । जोशीपुर–५, सिमराना  

आनेक टिहुवार हम्रे थारू काहे अपनाइ ?

आनेक टिहुवार हम्रे थारू काहे अपनाइ ?

५८५ दिन अगाडि

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१९ असोज २०८०

असिराम डंगौरा आदिवासी थारू तराईके लडिया फटुँवा बनुवाँ किनारे बसोबास करूइया जात हो । आदिमकालसे बनुवँक् किनारे बैठल कारन थारू समाज तमानेक प्रकृतिक आपत विपत हैजा, मलेरिया जैसिन समाज विनाशक रोगसे डब्नि भिराहुर करटि बचल बा ।  इतिहास साछि बा, हैजा मलेरियासे नाइ डेराइल जात थारू हो कैहके । प्रकृतिसंग जिन्गिक दुःख सुख साटल थारू समाज पितृसंग प्रायः प्रकृतिम रहल जीवजन्तु रूखुवा बरिखुवाक पुजा करठ । टबमारे थारू समाजहे प्रकृतिपुजक फे कैह जाइठ ।  राज्यके एकात्मकवाद गलत अर्थसे अब्बै लगभग ८० प्रतिशत थारू हिन्दू ढरम ओर आटै । थारू खोजकर्ता डा गोपाल दहितलगायत टमान थारू विद्वानहुक्रे थारू प्रकृति पुजकसंग बुद्धिस्ट होईह कनामे जोर डेहल बाटै। मनो यइनके खोज थारू बुद्धिस्ट होईह कना सच हुई फे सेकि नाइ फे।  यदि खोजकर्ताहुक्रे हिन्दू ढरमके प्रभावसे हम्रे हिन्दू हुइ कना सोंच बड्ले सेक्हि कलेसे डा दहितजी लगायतट हमार थारू विद्वानन्के खोज सफल हु जाइ, जहाँसम इ हुइना चाहि । मनो इ लोहेक चिउरा चबैनासे कम नाइ हो।   जे होस्, थारू समाजमे ढरमके बारेम कुछ चेतना आइल बा । आझकल प्राय थारूहुक्रे अपन उपथर, ढरम कला संस्कृतिके खोजमे लागल बाटै ।  थारू प्रकृतिक पुजा करटि अइलाँ, आगे फे करटि रहब । प्रकृतिसे लग्गे हुइलेक कारन हमार बनुवाँ फटुवामे थारूनके खास हक लागठ । थारू समाज परिवारिक जिन्गी चलाइक लग बान्झ फँटुवा सुस्ना डुकरिक झमरा फाँरके खेटि करटि आइल बा। बन्झर बनुवक फँटुवा, आंग कुकैना सुस्ना डुकरि ओ हैजा मलेरिया लगैना मसन्से लरके धरतीक छाती फारके अनेक मेरके अनाज फरैलेक कारन थारून भूमिपुत्र फे कैह जाइठ। जार, घाम, पानी, सिट सहके परिवारके बरस भरिक खैनाक सामा कर्ना थारू जात गैरथारून्के तुलनामे एकडम मेहनटि ओ जिट्टल जात हो। परिवारिक भरन पोसनमे चट्नि भात खाके घाम पानी सहके खेटिक कर्रा काम करल बाफट थारू समाज ‘सिकलसेल एनिमिया’ कना प्रायः थारूनमे किल लग्ना वंसानुगट रोग इनाम फे पैले बा । इ रोगके कारन कैंयो थारू अमचुर हस सुखाके अकालमे मुटि आटै।  थारू जात मेहनत कर्नाम कबु नि डरैठै । अपन रकट पस्ना बहाके परिवार पाले सेक्ना हर थारूनमे छमटा बा । अट्रा मेहनटि थारू हरकुछ जरूरट अपनहि पुरा करे सेकठ टो अभिन सम अटा पाछे काहे बा ? कना प्रस्न आइठ । यकर उत्तरमे यहे कहे सेकजाइठ कि थारू समाज शिक्षामे पाछे टो बा, संगेसंगे बहुट खर्चालु फे बा । खर्चके मामलामे सायड समाजमे रहल सक्कु समुदायसे कैंयों बह्रटा खर्चालु थारूनहे कहे सेकजाइ । देशमे ढरम, जात, भाषा, संस्कृति भुगोलके विविधता बा । यहाँ करिब १४२ जातजाति समुदायके मनै बसोबास करठै । थारूहुक्रे अपन टर टिहुवार टो मनैबे करठै, मनो थारून अपन कोल्कहा टिहुवारसंगे कोइ आगन्टुक, कोइ गैरथारूनके टिहुवार फे बहुट कर्रासे मनैठै ।  ऐसिक टर टिहुवार मनैना हुइलेक ओरसे थारू समाजमे हर महिने टिहुवार मनैना हुइ लागठ । अटवारि, अस्टिम्कि टे अक्के मैन्हम आइठ । हर टिहुवारमे थारू बहुट खर्च करठै । थारूनके प्रायः पैसा अइना कना खेटिक रकम बेचके हो। हम्रे अपन टर टिहुवारमे खर्च टो करठि करठि, मनो औरेक टर टिहुवार फे अपन हो मनाइक परठ कैहके बहुट ज्यादा फजुल खर्च करठि । थारु महिलन् तिज मनाइ लागल बाटै ।  इहे कारन हमार आजा, बुडु माटिम हाँठ, गोर गलैटि अइलाँ, मने कुछ नि प्रगटि हुइल । हमार डाइ बाबा हुक्र हाँठ, गोर गलाइटै, कुछ नि हुइठो । हम्रनसे फे कुछ नि विकास हुइठो, हमार लर्कनसे टो झन कुछ नै उखरि । ओरौनीमे, अट्रै कहम कि हम्रे थारू मेहनत कर्नाम कबु डराइल नाइ हुइ, मेहनट कर्ना, जोस जाँगर हर थारूनके रकटमे बा । कमि बा टो बस खालि शिक्षाके । टबमारे हम्रे हमार समाजमे रहल हर समुडायके टर टिहुवार हे सम्मान डि मनो ओइनके टिहुवार हम्रे नाइ अपनाइ ।  राष्ट्रिय स्तरके टिहुवार फे यदि हमार थारूनके हितमे नाइ हो कलेसे नाइ मनैलेसे फे कुछ फरक नाइ परि । हम्रे अपन थारू टर टिहुवार भर नाइ छोर्ना चाहि । टर टिहुवार टरक भरक बनाइक लग हम्रे रिन काह्रके फे हडसे ढेर खर्च करठि, इ फजुल खर्च बन्ड करि ।  टिहुवारमे जौन फजुल खर्च करठि, उहि हमार लर्कनके शिक्षामे लगाइ । इहिनसे अइना डिनमे हमार थारू समाज कुछ प्रगटि करे सेकि । यडि हमार थारू समाजमे बचत ओ शिक्षा रहि टो कोइ सरकारी नोकरी, सरकारी अनुदानके सायत जरूरत फे नाइ परि । जोशीपुर–५ सिमराना, कैलाली