लखागिन थारू साहित्य श्रृङखलाम मुक्तक, गजल लेखनबारे प्रशिक्षण

लखागिन थारू साहित्य श्रृङखलाम मुक्तक, गजल लेखनबारे प्रशिक्षण

६ दिन अगाडि

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२९ भदौ २०८१

संकटमे हरेरि पुजा 

संकटमे हरेरि पुजा 

१५ दिन अगाडि

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२० भदौ २०८१

शत्रुघन चौधरी आजकल गाँउ गाँउमे हरेरि पुजा हुईटीबा । कहुँ पुजा सम्पन्न हु राखल, कहुँ बाँकी बा । हरेरि पुजा थारू समुदायमे कैजैना पुजा मध्य एक महत्वपुर्ण पुजा हो । हरेरि पुजाहे सबसे बर्का पुजाके रूपमे फे लेजाईठ । खास कैके खेतिपाति सेकके भाडोमे यि पुजा गाउँभरके मनै मिलके सामुहिक रूपमे पुजा कैजाइठ । वालिनालि मजा होय, गाँउमे खाँज खुजलि नालागे हैवि दैवी नालागे पशु चाैपायाके रक्षा होय, घर गाउमे अनाज भरपुर होय कना विश्वासके साथ यि पुजा कैजाईठ । हरेरि पुजामे गुरूवा अनिवार्य चाहठ । देशबन्ढिया, केसाैका घरगुरूवा लगायत गुरूवनके महत्वपुर्ण भुमिका रहठ । गुरूवा ज्ञान एक अदभुत ओ अलैाकिक ज्ञान हो । जोन गुरूवालोग साधना, दिव्य वाँणि ओ गुरूमन्त्रसे पैले रठाँ । गुरूवक संख्या दिन प्रति दिन घटटी जाईटा । एक अध्धययन फे डेखासेकल आवक ३० वरष परसे थारू समुदायमे गुरूवा लोप हुईना खतरा बा । गुरुवनके अस्तित्व संकटमे पर्ना कलक थारूनके परम्परागत पुजा संकटमे पर्ना हो । यिहिसे फे कहे सेकजाईठ हरेरि पुजा फे संकटमे परटा । लावा गुरूवा कोन गाउक हरेरिमे कैठो निकरलाँ कना समाचार कबु नै पढे, सुने मिलठ । यदि कोई कबुकाल गुरूवा निकरि कलसे फे यी समाचार नै बनठ । यि दुखके बाट हो । लावा गुरूवा नै निकरनासे फे अनुसन्धानके निष्कर्ष मेल खाईठ । यकर वारेमे कहुँ चिन्तन मनन विमर्श कैल नै विल्गठ । गाउघरमे यकर वारेम बहल चलैना अभिन ढिला नै हुईल हो । आब हरेक हरेरि पुजामे यि छलफल चलैना जरूरि विल्गठ । पुरान गुरूवनके ज्ञान पुस्तान्तरण कसिक कर सेकजाईठ, बाट उठान करि । गोटगाट स्थानिय सरकार सिमिट बजेट पुजा खर्च कैहके डेलक समाचार फे आईल बा, यि फोहिक विषय हो । लेकिन आब सेँन्डुर टिका चिङ्नि आदि पुजा खर्च किल नाहि यिहि दिगो बनाईक लग धेर बजेट आवश्यक विल्गठ । गुरूवनहे प्रोत्साहन भत्ता चाहल । लावा गुरूवा निकरलेसे लाखो रूपियक पुरस्कार रासि ढारे परल । अस्टके गुरूवनके टनखालगायत विविध सुविधा टोके परल । गुरूवनहे प्रोत्साहन भत्ता चाहल । लावा गुरूवा निकरलेसे लाखो रूपियक पुरस्कार रासि ढारे परल । अस्टके गुरूवनके टनखालगायत विविध सुविधा टोके परल । गुरूवनके विमा कर परल । समय समयमे या माघमे गाउक गुरूवनहे सम्मान कर परल । गुरूवनके क्षमता विकास कर परल, ओषधि उपचारके व्यवस्था हुईपरल । यकरलग स्थानिय सरकारसे बजेट माग करपर्ना जरूरि बा । वहाँ लोगनके ज्ञानके कदर जवटक नै हुई, टबटक लावा गुरूवा बन्ना कोई आगे नै परि । यदि पुरान परम्परा सस्कृति वचैना बा टे यहोर फे आजुसे सोचि जागि उठि ओ लागि । जय अखरिया ।

आजउरा प्रतिष्ठानसे थारु भासाके ३ ठो पोस्टा प्रकाशित 

आजउरा प्रतिष्ठानसे थारु भासाके ३ ठो पोस्टा प्रकाशित 

३६ दिन अगाडि

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३१ साउन २०८१

आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठान, सानेपा, ललितपुरसे इ बरस (२०८१ सालमे) थारु भासाके ३ ठो पोस्टा प्रकाशित हुइल बा । प्रकाशित पोस्टामे भूमिका थारुके कविता संग्रह कहियासम अनागरिक, मानसिंह महतोके ललपुरीया थारुहरुको संस्कृति, भुलाई चौधरी, बुद्धसेन चौधरी ओ सियाराम चौधरीके प्रारिम्भक थारु ब्याकरणके पोस्टा निक्रल बा ।  मानसिंह महतोके ललपुरीया थारुहरुको संस्कृति पोस्टाके सिर्सक नेपाली भासामे बा । मने पोस्टा ललपुरिया थारु भासामे बा । प्रारिम्भक थारु ब्याकरण सप्तरी क्षेत्रके थारु भासामे बा । आदिवासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानसे परटेक बरस डस्याओर पोस्टा प्रकाशनके लग प्रोपोजल खुलठ । यम्ने स्रस्टालोग पाण्डुलिपि दर्ता कराइ सेक्ठा ।  प्रतिष्ठानके कोनो फेन प्रकाशन ओकर आफिससे सेंट्टिम मिलठ ।

ठुम्रारके १००औं साहित्यिक श्रृंखला प्रज्ञामे हुइना

ठुम्रारके १००औं साहित्यिक श्रृंखला प्रज्ञामे हुइना

५२ दिन अगाडि

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१५ साउन २०८१

            ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके ९९औं साहित्यिक श्रृंखलामे साहित्यकार मानबहादुर पन्नाहे स्वागत कैटि डा सर्वहारी, साथमे नन्दुराज चौधरी । ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके १००औं साहित्यिक श्रृंखला नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानके देवकोटा सभाहलमे हुइना बा ।  अइना साउन २६ गते दिनके १ बजे १००औं साहित्यिक श्रृंखला हुइना जानकारी श्रृंखलाके संयोजक थारु लेखक नेपाल संघ नेपालके केन्द्रीय अध्यक्ष डा कृष्णराज सर्वहारी डेलाँ । प्रज्ञा प्रतिष्ठान लगायत मेरमेरिक थारु संघसंस्थाके सहकार्यमे हुइना कार्यक्रमके लग कविता पठैना अर्जि कइगइल बा । १००औं साहित्यिक श्रृंखलाहे भव्य बनाइक लग डा कृष्णराज सर्वहारीके संयोजकत्वमे मूल तयारी समिति बना गइल बा । जेम्ने नन्दुराज चौधरीके संयोजनमे आर्थिक, शत्रुघन चौधरीके संयोजनमे प्रचारप्रसार, सिताराम चौधरीके संयोजनमे मञ्च व्यवस्थापनलगायट समिति बना गइल बा ।  इहिसे पहिले साहित्यकार मानबहादुर चौधरी पन्नाके बरका पुहनाइमे ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला असार २९ गटे सनिच्चरके कीर्तिपुर, पाँगास्थित बरघर रेस्टुरण्टमे निम्जल रहे ।  २०६९ साल माघ महिनासे डा सर्वहारीके नयाँबजार, कीर्तिपुरके डेराके छतसे ठुम्रार साहित्यिक बखेरी सुरु हुइलक हो । पाछे त्रिवि परिसरके बालकुमारी खाजा घर हुइटि हाल कीर्तिपुर, पाँगास्थित बरघर रेस्टुरण्टमे महिनक अन्तिम शनिच्चरके बिहानके कार्यक्रम नियमित बा । कोरोना अवधिमे कार्यक्रम बन्द रहे । बखेरीमे वाचन कइगइल रचना ‘परगा’के रुपमे पोस्टा निकार गइल बा । स्मरण रहे, थारु भसा साहित्य केन्द्रसे हरेक महिनक पहिल शनिच्चरके दिनके ललितपुर, कुपण्डोलस्थित नाइटिंगेल स्कूलमे थारु साहित्यके रचना वाचन बसघरा हुइठ । २०८१ असारसम यकर ७२ भाग निम्जल बा ।  

ठुम्रारके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल

ठुम्रारके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल

६८ दिन अगाडि

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३० असार २०८१

साहित्यकार मानबहादुर चौधरी पन्नाके बरका पुहनाइमे ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके ९९औं साहित्यिक श्रृंखला निम्जल बा ।  असार २९ गटे सनिच्चरके काठमाडौं, कीर्तिपुर, पाँगास्थित बरघर रेस्टुरण्टमे हुइल कार्यक्रममे साहित्यकार मानबहादुर पन्ना कहलाँ, ‘थारु साहित्यमे समालोचना विधा कमजोर बा । यकर कारन हमार थारु पोस्टाके चर्चा परिचर्चा हुइ नइ सेकल हो ।’ ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके साहित्यिक बखेरीसे अपने बहुट प्रभावित हुइल कहटि पन्ना आगे कहलाँ, ‘मोर गृहजिल्ला सुर्खेतमे मै अध्यक्ष रहल लखागिन थारु उत्थान मञ्चसे पाँच श्रृंखला थारु साहित्यके बखेरी करले बटुँ । आब इहि निरन्तरता डेहम् ।’ ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके संयोजक डा कृष्णराज सर्वहारीके घरगोस्याइमे हुइल कार्यक्रममे शत्रुघन चौधरी, अर्णव चौधरी, नेपालु चौधरी, गोपाल चौधरी, सुनिता चौधरी, गणेश वर्तमान, नन्दुराज चौधरी, दाङ, गढवा–७ के वडाध्यक्ष राहुलदेव चौधरी, कुछत नारायण चौधरी, डा रामबहादुर चौधरीलगायट स्रस्टालोग आअ पन रचनाके सगसंगे शुभकामना डेले रहिट ।  उ अवसरमे इहे असार २७ गटे संस्कृति मन्त्रालयसे क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार (कर्णाली प्रदेश) पाइल साहित्यकार मानबहादुर पन्नाहे सम्मान फेन कइ गइल रहे । पन्नाके ढुकढुकी (मुक्तक, कविता २०५७), किसानके जिन्दगी (खण्डकाव्य २०६१), सख्या नाच (गीत २०७०), ककनदरान छोटकी (खिस्सा २०७०), एक गोरुवक् बटकुही (हाँस्यव्यंग्य सहलेखन २०७५) थारु भासाके पोस्टा ओ हाम्रो थारु समाज र संस्कृति (२०७९) अनुसन्धानमुलक पोस्टा प्रकाशित बटिन् । ओस्टक संस्कृति मन्त्रालयसे डोसर थारु स्रष्टा बुद्धसेन चौधरी फे मधेश प्रदेशसे इ बरस क्षेत्रीय प्रतिभा पुरस्कार पइले बटाँ ।  डोसर समाचार अन्सार ठुम्रार साहित्यिक बखेरीके २०८१ साउनके अन्टिम सनिच्चरके हुइना १००औं साहित्यिक श्रृंखलाहे भव्य बनाइक लग डा कृष्णराज सर्वहारीके संयोजकत्वमे मूल टयारी समिति बना गइल बा । जेम्ने नन्दुराज चौधरीके संयोजनमे आर्थिक, शत्रुघन चौधरीके संयोजनमे प्रचारप्रसार, सिताराम चौधरीके संयोजनमे मञ्च व्यवस्थापनलगायट समिति बना गइल बा । साउनके पहिला सनिच्चरके बैठकमे थप समिति बना जैने बा । 

प्रनव आकाशके ६ गजल 

प्रनव आकाशके ६ गजल 

११८ दिन अगाडि

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१२ जेठ २०८१

प्रनव आकाश १ जोगि भुइ घस्क खेल्वार ड्यास गलाइट  नक्ली ठर्वन जस्टक जन्निन मुन्ड्री घलाइट अट्वल्या जिउगरक उराइटा डुरिक चिरै  टरसे जस्गरक मुस्वन अट्वा ढलाइट ब्यार खाक चौकस नि मान्ठुइट गिउरन  सङ्ग रहारङ्गिट कर अखोरे बलाइट गाउँम बन्वक राहा बुटैना ख्याल बा  लर्का घरम हाँठ हाँठ सलाइ चलाइट । २ यी बजार म ओसिन का पा जैठा डेख्क डुनिया फे लस्गरक आ जैठा ठरुवा परड्यास जैना, घर बिस्रैना  आसम यहोर जन्निक, साँस जा जैठा रैटीक कुठ्लिम एक डाना डर्या नै हुइस  जिम्दर्वक घरम सड्ड भ्वाज खा जैठा  जौन ठाउँम ढ्याउर डुखी मनै बाट  उह ठाउम भगन्वक भजन गा जैठा । ३ कहुइया कैडेल करम जाट्से खोटी बा  खुसि लिख्ना लिल्हार फे ट छोटी बा गाउँ चिर्वाइन गन्ढाटा, टिह्वारक डिन  घरक भन्सम जरल, फुस्र्या रोटि बा लर्का रङबिरङ्क रिबनम ख्यालट  छाइक भर कुल्मुलाइल, पुरान झोटी बा डिउटा जिन रिसैहो रै, छाँकी डेहटु  किन नि सेक्नु करुवा, फुटल टोटि बा । ४ पैल्ह ट बुझ परल जिन्गिक सार ह का डोस लगैठो बिचारा लिल्हार ह डोकानम आढुनिक गफ लरैना मनै साइट बिगारल कैख रगेट्ठ बिलार ह गँवल्यन लग्मानी हुइल ठेसे ठर्वक घर आक सड्ड(सड्ड  पिट्ठा पर्यार ह ड्वासर जन्हक कमैया लागल ट उ बहुट पाछ पज्गुराडारल आपन बिचार ह । ५ भुवर बिहानसम छोट्की, ढान कुट्टी बा  खवर नि पाइट कब काम, कब छुट्टी बा बखारी भरक्टे मुस लक्लक्याइल बाट  गाउँम ढान डुढी होक बल्ल फुट्टी बा जन्ना मटाँवा बेराम बा, सब्ज ठोप्री बजाइट के सम्झी गाउँक बल्गर हर्झौखी टुट्टी बा बिचारी डिडिबाबुन, डाइह ढुइना कर्रा पर्ठिन अरोट करोट लौरा आम्हि, पठ्रीम मुट्टी बा । ६ पल्पल पल्पल निम्झटा अजर्या राट आम्ही बट्वैना पलि बा जिन्गिक बाट आब पो मै अक्कल्हे बाटु, डुखक ब्याला सुखक ब्याला बहुट रलह पक्रुइया हाँट सुख्ला रुख्वा हुरि, पानीसे बचैटी रहल चिरै अइबो नि कर्ल घुम्टा समझ्क ठाँट जिम्दर्वा घनि घनि अइठा रकट चुस बेन्हुक एकचो चुस्क चुपाजैठ, उरुसक जाट ।  

जुडीसितोल हे सिरुवा पावन

जुडीसितोल हे सिरुवा पावन

१५९ दिन अगाडि

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२ वैशाख २०८१

पृष्ठभूमिः बिक्रम सम्बत साल अनुसार वैसाख १ गते लया बछर (नयाँ वर्ष) सुरु हेछै । कोचिला थारु समुदायमे यीटा दिन बिषेश रुपसे मनछै । छोटना के मुडी मे पानी द्याके आशिर्वाद देछै, जनत बोडनाके गोडा मे पानी द्याके आशिर्वाद लेवेके चलन छै । नव विवाहित जोडी सिरमोर फुल जित लदी पोखरमे जल प्रवाह करछै । सिरुवाके बारेमे बहुते झनाके जानकारी नय हवे साकछै । सेहास सिरुवा के बिषयमे यीटा लेखमे जानकारी देवेलगिन प्रयास करनिस ।  सिरुवा पावन थारु समुदायके संस्कृति छेकै । बछरके अन्तिम चैत महिनामे बहरजत्रा पुजा करछै । ग्रामतीमे गोटे बछर भोगल रोगबियाद, दुखसांघ, पीडाकष्ट सवना बहिके जो हे लया बछर मे फरे यीना रोग, दुःख, पीडा घुमी नय आवियान कहिके डिहवारनी, ग्रामथान, संसारीमाय, मलङ, कुलदेवता, पाँचोदेवीके सुमरीके धामी तान्त्रिक विधिसे चलान करिके बही देछै । वेहा दिन से आपन कुलदेवता, ग्रामथान, डिहवारनी के तीन दिन धुपदिप से सांझवाती द्याके यीटा बछरके बिदाई हे लया बछरके स्वागत करेके चलन छै । बहरजत्रा पुजाके वाद सामुहिक रुपमे कुप, इनार, डगरबाट सफा करैक । वहिने चैतके रानल वैसाखमे ख्याके चलन छै । वैसाख १ गते कादमाटी से लेढीपेढीके भौजी, गोतिया, ननद संगे हँसिमजाक करिके मनवैक । वैसाख १ गते राजाके (थानके राजा, देशके राजा) घरमे जुडीसितोल मनावैक । तकरबाद वैसाख २ गते आम मलवैया आपन घरमे जुडीसितोल मनावैक । अखने वैसाख १ गते जुडीसितोल मनावेके चलन यलैस । जुडीसितोल मनावेके विधिः थारु समुदायमे कुलदेवता के बासस्थान के सिरापाट कहछै । सिरा के अर्थ शिरस्थ (मूल) पाट के अर्थ बास हेछै । कुलदेवता बासस्थान के भनसी घर या गहवर कहछै । कुलदेवताके भनसी घरके इसानकोण मे स्थापना करछै । थारु समुदाय मे कहवी छै ‘सिरा न पाट के गोड लाग टाट के’ कहेके मतलव आपन कुलदेवता के सफामन से पुकार करला से बहुतो बिघ्नबाधा आप्सेआप सामाधान हेल बहुतो प्रमाण छै । बछरके सुरुमे घरके शिरस्थ कुलदेवताके शुद्ध लज, फुलपती, धुपदिप अर्पण करिके आशिर्वाद लेछै । आपन आपन कुलके देवी देवता फरक फरक हवे साकछै ।  तकरबाद ग्रामथान मे स्थापित दरदेवता, धामी धमियेन, हातीबन्धा (गणेश जी), बघेसरी (भवानी जी), लक्ष्मीडारी, अघोरीनाथ, डिहडिहवारनी (बास्तु), संसारी के लजफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । यकरवाद ग्रामतिके बयोबृद्ध या गछदार, गुरुवा धामीके पइर (गोडा) मे जलफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । तव घरके बयोबृद्ध, मातापिता, ककाककी, ददाभौजी के गोडामे जलढारीके आशिर्वाद लेछै । वहिने आपन से छुमीनाके मुडीमे जल द्याके जुडीसितोल कहिके आशिर्वाद देछै । जुडीसितोल हे सिरुवा के अर्थः जुडी के अर्थ जुड (ठण्डा) सितोल के अर्थ सितल (शान्ति) हेछै । बैसाख मे गर्मी धमकल रहछै सेहास जुड (जुर) पानी से मन सितल (शान्ति) हेछै । सेहास बितल बछरके पिडासे दुखित हेल मन हे गर्मीसे तमसल मनके जुडावे लगिन सितल, जुड जल ढारीके कञ्चन शरीर रहोक कहिके आशिर्वाद देवेलेवे कारण जुडीसितोल कहछै ।   बहरजत्रा पुजाके बाद लया बछरमे रोगबियाद, हैजा, फौती, दुःख कष्ट नय भोगे परोक । सुख, शान्ति, निकेकुसले कञ्चन शरीर रहोक कहिके बछरके सुरुमे (सवसे पहिना) आपन कुलदेवताके सिरापाट, ग्रामथान, मातापिता, गुरुवा, धामीके सुरुमे जलफुल ढारकरिके सिरासे आशिर्वाद लेवेके कारणसे सिरुवा कहल गेलैस ।  राजधामी गुरुवा बैसाख १ गते पाँचोदेवती (पंचहायान) हांसपोसामे के पहिना पुजा करछै। तकरबाद इटहरीमे बैसाख २ गते उतर दिसर सिरामे कचना महादेवके जाग्राम पुजा किर्तन करछै । सिरा उतरमे बैसाख ३ गते इटहरीके कचना महादेवके पुजा करलके बाद भाठी दखिन दिसरके थानमे पुजा ढारते गेलके कारणसे सिरुवा कहछै । अखने बछरके सुरु बैसाख १ गते जुडीसितोल के सिरुवा पावन के रुपमे मान्यता पेलकैस । विहाके सिरमोर (फुल) बिसर्जनः नव विवाहित जोडीके सिरमोर (फुल) विवाह के वाद जतनसे सांठीके राखछै । सिरमोरसे झरल फुलनाके समटिके जतन करे परछै । तव बैसाख १ वा २ गते जित लदी या पोखर मे बिसर्जन करे परछै । फुल बिसर्जन के बाद विवाहित जोडी पानी मे हथरीके घुङघरी, झुना, माछ या कुन चिज पहिना पकडछि कि खाली हाथ रहछै, उटासे वकर छौडा कि छौडी बच्चाके जलम अनुमान जोखना कहिके जनबिश्वास छै । झुना भटेलासे छौंडी बच्चा, घुङघरी भेटलासे छौडा बच्चा हवेके प्रवल संभावना रहछै । तकरबाद जलकुमारीके धुपदिप हे फुलघोडा चढछै । जलकुमारी से सुखमय बैबाहिक जीवन हे सन्तान के कामना करछै ।  सिरापाट (कुलदेवता) मे अर्पण विधिः आपन आपन कुलदेवता के जुडीसितोल या सिरुवामे बिशेष करिके पवित्र मनसे गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवताके आपन पाट (स्थान) मे आसन बान्हीके बैठे लगिन गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवता फरक फरक हेछै । मुख्य रुपमे शिवपार्वती, गयाँ (गांगो), देवी भवानी (बघेसरी), काली, बामत, गहिल, लक्ष्मी (भण्डारनी), बिसहरा (नाग), मुलदुवारमे (प्रवेशद्वार) रक्षा करेलगिन देवीके बाहान सिंह दुनु काते रहछै सेहास सिंहदुवार अपभ्रमसमे सिदुवार बोलचालमे कहछै । बहारसे नकारात्मक शक्ति घर येङनमे प्रवेशमे रोक लगावे लगिन सिदुवारीमे नरसिंह, हलुमान ठाकुर, भैरव के स्थापना करल रहछै ।  हाथगोड धोवीके एकलोटा जल भोरिके, फुलपती, धुपदिप हे पान प्रसाद चढ्याके कल जोडिके कुलदेवतासे बिन्ति गोचर अनुरोध करछै, ‘हे कुलदेवता, हे पांचोदेवी, राजा राज छोडने राज नय भेटछै देवता पाट छोडने से पाट नय रहछै । सेहास आपन राजपाट समारीके स्थीर बरिके बैठ । हमर घरगैरना, बालगोपाल, सखासग्तउन के निके कुसले राखियान । हमे मलवैया छेकिन । येंठ खेछिन झुठ बोलछिन । घडीघडी अपराध करछीन । जे जानछुन वतन्या करछुन । जे जुरलु से चढनुस । जे नय जानछुन से नय चढनुस । अधना अज्ञानी जानीके हमर गलती क्षमा करिदिहेन । तोर शरणागत छुन दया कर, दया कर, दया कर ।’ कुल देवता कि जय, पाँचोदेवती कि जय । यतन्या बिन्ति करिके लोटाके जल ढारी देछै हे गोड लागछै ।                                                                                                 लेखक रामसागर चौधरी उपसंहारः सिरुवा थारु समुदायके सांस्कृतिक धरोहर छेकी । यकर महत्व हे फाईदाके बारेमे छलफल बहस चलना जरुरी छि । थारु समुदाय सिरुवा पावनके जीवन्त राखेलगिन हर प्रयतन करोक । सिरुवा पावनमे गुलगुलिया, पुव, करिबरी, चितकोव रोटी, खिर, सोहारी औठ रकमके पकवान के मजा लिहेन । लया बछर मे बिकृतिके रुपमे प्रवेश करल जाँड, दारू मे फजुल खर्च कम करिके झैझगडासे दुर रहिके आनन्दसे मनावम । कञ्चन शरीर हे प्रफुल मन बनोक सिरुवाके हार्दिक शुभकामना । इटहरी–१२, खनार, सुनसरी