जुडीसितोल हे सिरुवा पावन
१५९ दिन अगाडि
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२ वैशाख २०८१
पृष्ठभूमिः
बिक्रम सम्बत साल अनुसार वैसाख १ गते लया बछर (नयाँ वर्ष) सुरु हेछै । कोचिला थारु समुदायमे यीटा दिन बिषेश रुपसे मनछै । छोटना के मुडी मे पानी द्याके आशिर्वाद देछै, जनत बोडनाके गोडा मे पानी द्याके आशिर्वाद लेवेके चलन छै । नव विवाहित जोडी सिरमोर फुल जित लदी पोखरमे जल प्रवाह करछै । सिरुवाके बारेमे बहुते झनाके जानकारी नय हवे साकछै । सेहास सिरुवा के बिषयमे यीटा लेखमे जानकारी देवेलगिन प्रयास करनिस ।
सिरुवा पावन थारु समुदायके संस्कृति छेकै । बछरके अन्तिम चैत महिनामे बहरजत्रा पुजा करछै । ग्रामतीमे गोटे बछर भोगल रोगबियाद, दुखसांघ, पीडाकष्ट सवना बहिके जो हे लया बछर मे फरे यीना रोग, दुःख, पीडा घुमी नय आवियान कहिके डिहवारनी, ग्रामथान, संसारीमाय, मलङ, कुलदेवता, पाँचोदेवीके सुमरीके धामी तान्त्रिक विधिसे चलान करिके बही देछै । वेहा दिन से आपन कुलदेवता, ग्रामथान, डिहवारनी के तीन दिन धुपदिप से सांझवाती द्याके यीटा बछरके बिदाई हे लया बछरके स्वागत करेके चलन छै ।
बहरजत्रा पुजाके वाद सामुहिक रुपमे कुप, इनार, डगरबाट सफा करैक । वहिने चैतके रानल वैसाखमे ख्याके चलन छै । वैसाख १ गते कादमाटी से लेढीपेढीके भौजी, गोतिया, ननद संगे हँसिमजाक करिके मनवैक । वैसाख १ गते राजाके (थानके राजा, देशके राजा) घरमे जुडीसितोल मनावैक । तकरबाद वैसाख २ गते आम मलवैया आपन घरमे जुडीसितोल मनावैक । अखने वैसाख १ गते जुडीसितोल मनावेके चलन यलैस ।
जुडीसितोल मनावेके विधिः
थारु समुदायमे कुलदेवता के बासस्थान के सिरापाट कहछै । सिरा के अर्थ शिरस्थ (मूल) पाट के अर्थ बास हेछै । कुलदेवता बासस्थान के भनसी घर या गहवर कहछै । कुलदेवताके भनसी घरके इसानकोण मे स्थापना करछै । थारु समुदाय मे कहवी छै ‘सिरा न पाट के गोड लाग टाट के’ कहेके मतलव आपन कुलदेवता के सफामन से पुकार करला से बहुतो बिघ्नबाधा आप्सेआप सामाधान हेल बहुतो प्रमाण छै । बछरके सुरुमे घरके शिरस्थ कुलदेवताके शुद्ध लज, फुलपती, धुपदिप अर्पण करिके आशिर्वाद लेछै । आपन आपन कुलके देवी देवता फरक फरक हवे साकछै ।
तकरबाद ग्रामथान मे स्थापित दरदेवता, धामी धमियेन, हातीबन्धा (गणेश जी), बघेसरी (भवानी जी), लक्ष्मीडारी, अघोरीनाथ, डिहडिहवारनी (बास्तु), संसारी के लजफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । यकरवाद ग्रामतिके बयोबृद्ध या गछदार, गुरुवा धामीके पइर (गोडा) मे जलफुल ढारीके आशिर्वाद लेछै । तव घरके बयोबृद्ध, मातापिता, ककाककी, ददाभौजी के गोडामे जलढारीके आशिर्वाद लेछै । वहिने आपन से छुमीनाके मुडीमे जल द्याके जुडीसितोल कहिके आशिर्वाद देछै ।
जुडीसितोल हे सिरुवा के अर्थः
जुडी के अर्थ जुड (ठण्डा) सितोल के अर्थ सितल (शान्ति) हेछै । बैसाख मे गर्मी धमकल रहछै सेहास जुड (जुर) पानी से मन सितल (शान्ति) हेछै । सेहास बितल बछरके पिडासे दुखित हेल मन हे गर्मीसे तमसल मनके जुडावे लगिन सितल, जुड जल ढारीके कञ्चन शरीर रहोक कहिके आशिर्वाद देवेलेवे कारण जुडीसितोल कहछै ।
बहरजत्रा पुजाके बाद लया बछरमे रोगबियाद, हैजा, फौती, दुःख कष्ट नय भोगे परोक । सुख, शान्ति, निकेकुसले कञ्चन शरीर रहोक कहिके बछरके सुरुमे (सवसे पहिना) आपन कुलदेवताके सिरापाट, ग्रामथान, मातापिता, गुरुवा, धामीके सुरुमे जलफुल ढारकरिके सिरासे आशिर्वाद लेवेके कारणसे सिरुवा कहल गेलैस ।
राजधामी गुरुवा बैसाख १ गते पाँचोदेवती (पंचहायान) हांसपोसामे के पहिना पुजा करछै। तकरबाद इटहरीमे बैसाख २ गते उतर दिसर सिरामे कचना महादेवके जाग्राम पुजा किर्तन करछै । सिरा उतरमे बैसाख ३ गते इटहरीके कचना महादेवके पुजा करलके बाद भाठी दखिन दिसरके थानमे पुजा ढारते गेलके कारणसे सिरुवा कहछै । अखने बछरके सुरु बैसाख १ गते जुडीसितोल के सिरुवा पावन के रुपमे मान्यता पेलकैस ।
विहाके सिरमोर (फुल) बिसर्जनः
नव विवाहित जोडीके सिरमोर (फुल) विवाह के वाद जतनसे सांठीके राखछै । सिरमोरसे झरल फुलनाके समटिके जतन करे परछै । तव बैसाख १ वा २ गते जित लदी या पोखर मे बिसर्जन करे परछै । फुल बिसर्जन के बाद विवाहित जोडी पानी मे हथरीके घुङघरी, झुना, माछ या कुन चिज पहिना पकडछि कि खाली हाथ रहछै, उटासे वकर छौडा कि छौडी बच्चाके जलम अनुमान जोखना कहिके जनबिश्वास छै । झुना भटेलासे छौंडी बच्चा, घुङघरी भेटलासे छौडा बच्चा हवेके प्रवल संभावना रहछै । तकरबाद जलकुमारीके धुपदिप हे फुलघोडा चढछै । जलकुमारी से सुखमय बैबाहिक जीवन हे सन्तान के कामना करछै ।
सिरापाट (कुलदेवता) मे अर्पण विधिः
आपन आपन कुलदेवता के जुडीसितोल या सिरुवामे बिशेष करिके पवित्र मनसे गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवताके आपन पाट (स्थान) मे आसन बान्हीके बैठे लगिन गोचर बिन्ति करछै । कुलदेवता फरक फरक हेछै । मुख्य रुपमे शिवपार्वती, गयाँ (गांगो), देवी भवानी (बघेसरी), काली, बामत, गहिल, लक्ष्मी (भण्डारनी), बिसहरा (नाग), मुलदुवारमे (प्रवेशद्वार) रक्षा करेलगिन देवीके बाहान सिंह दुनु काते रहछै सेहास सिंहदुवार अपभ्रमसमे सिदुवार बोलचालमे कहछै । बहारसे नकारात्मक शक्ति घर येङनमे प्रवेशमे रोक लगावे लगिन सिदुवारीमे नरसिंह, हलुमान ठाकुर, भैरव के स्थापना करल रहछै ।
हाथगोड धोवीके एकलोटा जल भोरिके, फुलपती, धुपदिप हे पान प्रसाद चढ्याके कल जोडिके कुलदेवतासे बिन्ति गोचर अनुरोध करछै, ‘हे कुलदेवता, हे पांचोदेवी, राजा राज छोडने राज नय भेटछै देवता पाट छोडने से पाट नय रहछै । सेहास आपन राजपाट समारीके स्थीर बरिके बैठ । हमर घरगैरना, बालगोपाल, सखासग्तउन के निके कुसले राखियान । हमे मलवैया छेकिन । येंठ खेछिन झुठ बोलछिन । घडीघडी अपराध करछीन । जे जानछुन वतन्या करछुन । जे जुरलु से चढनुस । जे नय जानछुन से नय चढनुस । अधना अज्ञानी जानीके हमर गलती क्षमा करिदिहेन । तोर शरणागत छुन दया कर, दया कर, दया कर ।’ कुल देवता कि जय, पाँचोदेवती कि जय । यतन्या बिन्ति करिके लोटाके जल ढारी देछै हे गोड लागछै ।
लेखक रामसागर चौधरी
उपसंहारः
सिरुवा थारु समुदायके सांस्कृतिक धरोहर छेकी । यकर महत्व हे फाईदाके बारेमे छलफल बहस चलना जरुरी छि । थारु समुदाय सिरुवा पावनके जीवन्त राखेलगिन हर प्रयतन करोक । सिरुवा पावनमे गुलगुलिया, पुव, करिबरी, चितकोव रोटी, खिर, सोहारी औठ रकमके पकवान के मजा लिहेन । लया बछर मे बिकृतिके रुपमे प्रवेश करल जाँड, दारू मे फजुल खर्च कम करिके झैझगडासे दुर रहिके आनन्दसे मनावम । कञ्चन शरीर हे प्रफुल मन बनोक सिरुवाके हार्दिक शुभकामना ।
इटहरी–१२, खनार, सुनसरी