शत्रुघन चौधरी
आजकल गाँउ गाँउमे हरेरि पुजा हुईटीबा । कहुँ पुजा सम्पन्न हु राखल, कहुँ बाँकी बा । हरेरि पुजा थारू समुदायमे कैजैना पुजा मध्य एक महत्वपुर्ण पुजा हो । हरेरि पुजाहे सबसे बर्का पुजाके रूपमे फे लेजाईठ ।
खास कैके खेतिपाति सेकके भाडोमे यि पुजा गाउँभरके मनै मिलके सामुहिक रूपमे पुजा कैजाइठ । वालिनालि मजा होय, गाँउमे खाँज खुजलि नालागे हैवि दैवी नालागे पशु चाैपायाके रक्षा होय, घर गाउमे अनाज भरपुर होय कना विश्वासके साथ यि पुजा कैजाईठ ।
हरेरि पुजामे गुरूवा अनिवार्य चाहठ । देशबन्ढिया, केसाैका घरगुरूवा लगायत गुरूवनके महत्वपुर्ण भुमिका रहठ । गुरूवा ज्ञान एक अदभुत ओ अलैाकिक ज्ञान हो । जोन गुरूवालोग साधना, दिव्य वाँणि ओ गुरूमन्त्रसे पैले रठाँ ।
गुरूवक संख्या दिन प्रति दिन घटटी जाईटा । एक अध्धययन फे डेखासेकल आवक ३० वरष परसे थारू समुदायमे गुरूवा लोप हुईना खतरा बा । गुरुवनके अस्तित्व संकटमे पर्ना कलक थारूनके परम्परागत पुजा संकटमे पर्ना हो । यिहिसे फे कहे सेकजाईठ हरेरि पुजा फे संकटमे परटा ।
लावा गुरूवा कोन गाउक हरेरिमे कैठो निकरलाँ कना समाचार कबु नै पढे, सुने मिलठ । यदि कोई कबुकाल गुरूवा निकरि कलसे फे यी समाचार नै बनठ । यि दुखके बाट हो । लावा गुरूवा नै निकरनासे फे अनुसन्धानके निष्कर्ष मेल खाईठ । यकर वारेमे कहुँ चिन्तन मनन विमर्श कैल नै विल्गठ । गाउघरमे यकर वारेम बहल चलैना अभिन ढिला नै हुईल हो । आब हरेक हरेरि पुजामे यि छलफल चलैना जरूरि विल्गठ ।
पुरान गुरूवनके ज्ञान पुस्तान्तरण कसिक कर सेकजाईठ, बाट उठान करि । गोटगाट स्थानिय सरकार सिमिट बजेट पुजा खर्च कैहके डेलक समाचार फे आईल बा, यि फोहिक विषय हो । लेकिन आब सेँन्डुर टिका चिङ्नि आदि पुजा खर्च किल नाहि यिहि दिगो बनाईक लग धेर बजेट आवश्यक विल्गठ ।
गुरूवनहे प्रोत्साहन भत्ता चाहल । लावा गुरूवा निकरलेसे लाखो रूपियक पुरस्कार रासि ढारे परल । अस्टके गुरूवनके टनखालगायत विविध सुविधा टोके परल ।
गुरूवनहे प्रोत्साहन भत्ता चाहल । लावा गुरूवा निकरलेसे लाखो रूपियक पुरस्कार रासि ढारे परल । अस्टके गुरूवनके टनखालगायत विविध सुविधा टोके परल । गुरूवनके विमा कर परल । समय समयमे या माघमे गाउक गुरूवनहे सम्मान कर परल । गुरूवनके क्षमता विकास कर परल, ओषधि उपचारके व्यवस्था हुईपरल ।
यकरलग स्थानिय सरकारसे बजेट माग करपर्ना जरूरि बा । वहाँ लोगनके ज्ञानके कदर जवटक नै हुई, टबटक लावा गुरूवा बन्ना कोई आगे नै परि । यदि पुरान परम्परा सस्कृति वचैना बा टे यहोर फे आजुसे सोचि जागि उठि ओ लागि । जय अखरिया ।
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